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षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका
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युग्म है, क्या ओम है, क्या विशिष्ट है, और क्या नोम-नोविशिष्ट है; इस प्रकार १३ प्रश्न करके उनके ऊपर क्रमश: विचार करते हुए कहा गया है कि (१) उक्त ज्ञानावरणीयवेदना द्रव्य से कथंचित् उत्कृष्ट है, क्योंकि, गुणितकर्माशिक सप्तम पृथिवीस्थ नारकी जीव के उस भवके अन्तिम समय में ज्ञानावरणीय की उत्कृष्ट वेदना पाई जाती है । (२) कथंचित् यह अनुत्कृष्ट है, क्योंकि, गुणितकर्माशिक को छोड़कर शेष सभी जीवों के ज्ञानावरणीय का द्रव्य अनुत्कृष्ट पाया जाता है। (३) कथंचित् वह जघन्य है, क्योंकि, क्षपितकर्माशिक क्षीणकषाय गुणस्थानवर्ती जीव के इस गुणस्थान के अन्तिम समय में ज्ञानावरणीय का द्रव्य जघन्य पाया जाता है । (४) कथंचित् वह अजघन्य है, क्योंकि, उक्त क्षपितकर्माशिक को छोड़कर अन्य सब प्राणियों में ज्ञानावरणीयका द्रव्य अजघन्य देखा जाता है । (५) कथंचित् वह सादि है, क्योंकि, उत्कृष्ट आदि पदों का परिवर्तन होता रहता है, वे शाश्वतिक नहीं हैं । (६) कथंचित् वह अनादि है, क्योंकि, जीव का कर्मका बन्धसामान्य अनादि है, उसके सादित्व की सम्भावना नहीं है । (७) कथंचित् यह ध्रुव है, क्योंकि, अभव्यों तथा अभव्य समान भव्य
में भी सामान्य स्वरूप से ज्ञानावरण का विनाश सम्भव नहीं है । (८) कथंचित् यह अध्रुव है, क्योंकि, केवलज्ञानी जीवों में उसका विनाश देखा जाता है। इसके अतिरिक्त उक्त उत्कृष्ट आदि पदों का शाश्वतिक अवस्थान सम्भव न होने से उनमें परिवर्तन भी होता ही रहता है । (९) कथंचित् वह युग्म है, क्योंकि, प्रदेशों के रूप में ज्ञानावरणीय का द्रव्य सम संख्यात्मक पाया जाता है । (१०) कथंचित् वह ओज है, क्योंकि, उसका द्रव्य कदाचित् विषम संख्या के रूप में भी पाया जाता है । (११) वह कथंचित् ओम है, क्योंकि, उसके प्रदेशों में कदाचित् हानि देखी जाती है । (१२) कथंचित् वह विशिष्ट है, क्योंकि, कदाचित् उसके प्रदेशों में व्यय की अपेक्षा आय की अधिकता देखी जाती है । (१३) कथंचित् वह नोम-नोविशिष्ट है, क्योंकि, प्रत्येक पद के अवयव की विवक्षा में वृद्धि और हानि दोनों की सम्भावना नहीं है ।
इसी प्रकार से उत्कृष्ट ज्ञानावरणीयवेदना क्या अनुत्कृष्ट है, क्या जघन्य है इत्यादि स्वरूप से एक-एक पद को विवक्षित करके उसके विषय में भी शेष १२ पदों की सम्भावना का विचार किया गया है ( देखिये पृ. ३० पर दी गई इन पदों की तालिका)
(२) स्वामित्व अनुयोगद्वार में ज्ञानावरणीय आदि कर्मो के उत्कृष्ट व अनुत्कृष्ट आदि पद किन-किन जीवों में किस-किस प्रकार से सम्भव है, इस प्रकार से उनके स्वामियों का विस्तारपूर्वक विचार किया गया है । उदाहरणार्थ ज्ञानावरणीय को लेकर उसकी उत्कृष्ट