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________________ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका ४०३ कर्मो को एक वेदना रूप से ग्रहण किया गया है, क्योंकि, एक ही वेदना शब्द से समस्त वेदना-विशेषों की अविनाभाविनी एक वेदना जाति की उपलब्धि होती है । ऋजुसूत्र नयकी अपेक्षा ज्ञानावरणीयवेदना आदि का निषेध कर एक मात्र वेदनीय कर्म को ही वेदना स्वीकार किया गया है, क्योंकि, लोक में सुख-दुख के विषय में ही वेदना शब्द का व्यवहार देखा जाता है । शब्दनय की अपेक्षा वेदनीय कर्मद्रव्य के उदय से उत्पन्न सुख-दुख का अथवा आठ कर्मो के उदय से उत्पन्न जीवपरिणाम को ही वेदना कहा गया है, क्योंकि, शब्दनय का विषय द्रव्य सम्भव नहीं है। ४. वेदनाद्रव्यविधान वेदनारूप द्रव्य के सम्बन्ध में उत्कृष्ट, अनुत्कृष्ट एवं जघन्य आदि पदों की प्ररूपणा का नाम वेदनाद्रव्यविधान है । इसमें पदमीमांसा, स्वामित्व और अल्पबहुत्व, ये तीन अनुयोगद्वार ज्ञातव्य बतलाये गये हैं। (१) पदमीमांसा में ज्ञानावरणीय आदि द्रव्यवेदना के विषय में उत्कृष्ट, अनुत्कृष्ट, जघन्य, अजघन्य, सादि, अनादि, ध्रुव, अध्रुव, ओज', युग्म , ओम, विशिष्ट और नोमनोविष्ट; इन १३ पदों का यथासम्भव विचार किया गया है । इसके अतिरिक्त सामान्य चूंकि विशेष का अविनाभावी है, अतएव उक्त १३ पदों में से एक-एक पद को मुख्य करके प्रत्येक पद के विषय में भी शेष १२ पदों की सम्भावना का विचार किया गया है । इस प्रकार ज्ञानावरणादि प्रत्येक कर्म के सम्बन्ध में १६९ {१३ + (१३ x १२) = १६९ } प्रश्न करके उक्त पदों के विचार का दिग्दर्शन कराया गया है। उदाहरण के रूप में ज्ञानावरण को ही ले लें। उसके सम्बन्ध में इस प्रकार विचार किया गया है - ज्ञानावरणीयवेदना द्रव्य से क्या उत्कृष्ट है, क्या अनुत्कृष्ट है, क्या जघन्य है, क्या अजघन्य है, क्या सादि है, क्या अनादि है, क्या ध्रुव है, क्या अध्रुव है, क्या ओज है, क्या १ ओज का अर्थ विषम संख्या है। इसके २ भेद हैं - कलिओज और तेजोज । जिस राशि में ४ का भाग देने पर ३ अंक शेष रहते हैं वह तेजोज (जैसे १५ संख्या) तथा जिसमें ४ का भाग देने पर १ अंक शेष रहता है वह कलिओज (जैसे १३ संख्या) कही जाती है। २ युग्म का अर्थ सम संख्या है । इसके २ भेद हैं - कृतयुग्म और बादरयुग्म (बादर यह द्वापर शब्द का • बिगड़ा हुआ रूप प्रतीत होता है। भगवतीसूत्र आदि श्वेताम्बर ग्रंथों में दावर-द्वापर शब्द ही पाया जाता है। जिस राशि में ४ का भाग देने पर कुछ शेष नहीं रहता वह कृतयुग्म राशि कही जाती है (जैसे १६ संख्या) । जिस राशि में ४ का भाग देने पर २ अंक शेष रहते हैं वह बादरयुग्म कही जाती है (जैसे १४ संख्या)।
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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