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________________ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका ३५९ कौन से हैं, उन्हीं का व्यवस्थित और पूर्ण निर्देश इस चूलिका में किया गया है । यहां ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र और अन्तराय, इस क्रम से आठ प्रधान कर्मों का स्वरूप बतलाया गया है और फिर उनकी क्रमशः पांच, नौ, दो, अट्ठाईस, चार, ब्यालीस, दो और पांच प्रकृतियां बतलाई गयी हैं । नाम की ब्यालीस प्रकृतियों के भीतर चौदह प्रकृतियां ऐसी हैं जिनकी पुन: क्रमशः चार, पांच, पांच, पांच, पांच, छह, तीन, छह, पांच दो, पांच, आठ, चार और दो, इस प्रकार पैंसठ उत्तरप्रकृतियां हो गई हैं, अतएव नामकर्म के कुल भेद ६५ - २८ = ९३ हुए, जिससे आठों कर्मों की समस्त उत्तरप्रकृतियां एक सौ अड़तालीस (१४८) हुई हैं ' । इसमें ४६ सूत्र हैं जिनका विषय आग्रायणीय पूर्व की चयनलब्धि के अन्तर्गत महाकर्मप्रकृतिप्राभूत के सातवें अधिकार बंधन के बन्धविधान नामक विभागान्तर्गत समुत्कीर्तना अधिकार से लिया गया है । २. स्थानसमुत्कीर्तन चूलिका प्रकृतियों की संख्या व स्वरूप जान लेने के पश्चात् यह जानना आवश्यक होता है कि उनमें से प्रत्येक मूलकर्म की कितनी उत्तर प्रकृतियाँ एक साथ बांधी जा सकती हैं और उनका बंध कौन-कौन से गुणस्थानों में संभव है । यह विषय स्थानसमुत्कीर्तन चूलिका में समझाया गया है । यहां सूत्रों में गुणस्थान निर्देश चौदह विभागों में न करके केवल संक्षेप के लिये छह विभागों में किया गया है - मिथ्यादृष्टि, सासादन, सम्यग्मिथ्यावृष्टि, असंयतसम्यग्दृष्टि, संयता-संयत और संयत । इनमें के प्रथम पांच तो गुणस्थान क्रम से ही हैं, किन्तु अन्तिम विभाग संयत में छठवें गुणस्थान से लेकर ऊपर के यथासंभव सभी गुणस्थानों का अन्तरभाव है जिनका उपपत्ति सहित विशेष स्पष्टीकरण धवलाकार ने किया है । ज्ञानावरण की पांचों प्रकृतियों का एक ही स्थान है, क्योंकि मिथ्यादृष्टि से लेकर संयत तक सभी उन पांचों ही का बंध करते हैं । दर्शनावरण के तीन स्थान हैं। पहले स्थान में मिथ्यादृष्टि और सासादन जीव हैं जो समस्त नौ ही प्रकृतियों का बंध करते हैं दूसरे में सम्यग्मिथ्यादृष्टि आदि संयत तक के जीव हैं जो निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला और स्त्यानगृद्धि, इन तीन को छोड़ शेष छह प्रकृतियों को बांधते हैं । तीसरे स्थान में वे संयत जीव हैं जो चक्षु, अचक्षु, अवधि और केवल, इन चार दर्शनावरणों का ही बंध करते हैं । वेदनीय का एक ही बंधस्थान है, क्योंकि मिथ्यादृष्टि से लेकर संयत तक सभी जीव साता और असाता १ देखो आगे दी हुई तालिका। २ देखो पुस्तक १, पृ. १२७, व प्रस्तावना पृ. ७३
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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