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________________ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका पुस्तक ५, पृ. २२२ २६. शंका यहां अपगतवेदविषयक शंका और उसके समाधान से विदित होता है कि द्रव्यस्त्री के भी अनिवृत्तिकरणादि गुणस्थान हो सकते हैं। क्या यह ठीक है ? ( नेमीचंद रतनचंदजी, सहारनपुर) समाधान देखो ऊपर नं. १६ का शंका - समाधान - - ३५७ पुस्तक ५, पृ. ३०३ २७. शंका यहां सूत्र १५९ में स्त्रीवेदियों तथा सूत्र १८८ में नपुंसकवेदियों में अपूर्वकरण व अनिवृत्तिकरण गुणस्थानवर्ती उपशम सम्यग्दृष्टियों की अपेक्षा जो क्षायिक सम्यग्दृष्टियों को कम बतलाया है वह किस अपेक्षा से है, क्योंकि सूत्र ९६० - १६१ व १८९१९० में उपशामकों की अपेक्षा क्षपकों का प्रमाण संख्यातगुणा कहा है । और उपशमश्रेणी पर चढ़नेवाले औपशमिक एवं क्षायिक सम्यग्दृष्टि दोनों हैं जब कि क्षपकश्रेणी चढ़ने वाले क्षायिक सम्यग्दृष्टि ही हैं। अतएव औपशमिक सम्यग्दृष्टियों की अपेक्षा क्षायिक सम्यग्दृष्टियों IT प्रमाण अधिक होना चाहिये था ? (नेमीचंद रतनचंद जी, सहारनपुर) - समाधान - स्त्रीवेदी व नपुंसकवेदी अपूर्वकरण एवं अनिवृत्तिकरण गुणस्थानवर्ती ai में क्षायिक सम्यग्दृष्टियों की कमी का कारण उनका अप्रशस्तवेद है । अप्रशस्त वेद के उदय सहित जीवों में दर्शनमोह का क्षय करने वालों की अपेक्षा उसका उपशम करने वाले ही अधिक होते हैं । (देखो अल्पबहुत्वानुगम सूत्र ७५-७६) । एवं उपशामकों के संचयकाल की अपेक्षा क्षपकों का काल अधिक होता है । हस्तलिखित प्रतियों में चूलिका - सूत्रों की व्यवस्था प्रस्तुत संस्करण में भिन्न-भिन्न नौ चूलिकाओं के सूत्रों की संख्या का क्रम एक दूसरी चूलिका से सर्वथा स्वतंत्र रखा गया है । यह व्यवस्था हस्तलिखित प्रतियों में पाई जाने वाली व्यवस्था से कुछ भिन्न है । उदाहरणार्थ अमरावती की प्रति में प्रकृतिसमुत्कीर्तना नामक प्रथम चूलिका में सूत्रसंख्या १ से ४२ तक पाई जाती है । दूसरी स्थानसमुत्कीर्तन चूलिका में सूत्र संख्या १ से ११६ तक दी गई है । इसके आगे की चूलिकाओं में सूत्रों पर चालू संख्याक्रम दिया गया है जिसके अनुसार प्रथम दंडकपर ११७, द्वितीय दंडकपर ११८, तृतीय दंडकर ११९, उत्कृष्टस्थिति चूलिका में १२० से १६२ तक, जघन्यस्थिति में १६३ से
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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