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________________ शंका समाधान पुस्तक १, पृ. ७० १.शंका- यहां षष्ठभक्त उपवास का अर्थ जो दो दिन का उपवास किया है वह किस प्रकार संभव है ? (नानकचंद जी, खतौली) समाधान – नियमानुसार दिन में दो बार भोजन का विधान है । किन्तु उपवास धारण करने के दिन दूसरी बार का भोजन त्याग दिया जाता है और आगे दो दिन के चार भोजन भी त्याग दिये जाते हैं। इस प्रकार चूंकि दो उपवासों में पांच भोजनवेलाओं को छोड़कर छठी बेला पर भोजन ग्रहण किया जाता है, अतएव षष्टभक्त का अर्थ दो उपवास करना उचित ही है । उदाहरणार्थ, यदि अष्टमी व नवमी का उपवास करना है तो सप्तमी की एक अष्टमी की दो और नवमी की दो, इस प्रकार भोजन वेलाओं को छोड़कर दशमी के दोपहर को छठी बेला पर पारणा की जायगी। पुस्तक १, पृ. १९२ २. शंका - यहां उद्धृत गाथा २५ के अनुवाद में योग पद का अर्थ तीनों योग किया है । परन्तु गोम्मटसार गाथा ६४ में उक्त पद का अर्थ केवल काययोग ही किया है। क्या केवली के तीनों योग हो सकते हैं ? (नानकचंदजी, खतौली) समाधान – केवली के तीनों योग होते हैं, इसीलिये उनका अन्त में निरोध भी किया जाता है । गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा ६४ की जी.प्र. टीका में योग पद से सामान्यतया योग और मं. प्र. टीका में मन, वचन व काय योगों में अन्यतम योग लिया गया है। पुस्तक १, पृ. १९६ ३. शंका – यहां सम्पूर्ण भावकर्म और द्रव्यकर्मों से रहित होकर सर्वत्रता को प्राप्त हुए जीव को आगम का व्याख्याता कहा है। क्या तेरहवें गुणस्थान में सम्पूर्ण द्रव्यकर्म दूर हो जाते हैं ? (नानकचंदजी, खतौली) समाधान - सम्पूर्ण कर्मों से रहित होने का अभिप्राय चार घातिया कर्मों से रहित होने का है, अघातियों से नहीं, क्योंकि, ज्ञानावरणादि चार घातिया कर्म ही क्रमश: अज्ञान, अदर्शन, मिथ्यात्व सहित अविरति, और अदानशीलत्वादि दोषों को उत्पन्न करते हैं जो कि आगमव्याख्याता होने में बाधक हैं। (देखो आप्तमीमांसा १, ४-६ व विद्यानन्दिकी टीका अष्टसहस्री)
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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