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________________ मानवास्थानी अपेक्षा , भावर अन्यायका प्रमाण (पु.५, प्रस्ता . पृ.३ ओ) अन्तर मार्गणा मार्गणा के अवान्तर भेद | नाना जीवों की अपेक्षा । एक जीव की अपेक्षा भाव जघन्य | उत्कृष्ट | जघन्य । उत्कृष्ट (सासावनसम्बम्हति मोधवत् | मोधवत् पल्योपम असंख्या तेज, पच सम्बम्मिध्वाति भाग अन्तर्मुर्त साधिक १, १८ सागरो, तेज, पथ लेश्यावाले संयतासंयत प्रमत्तसंयत निरन्तर निरन्तर क्षायोपशमिक अप्रमत्तसंयत अल्पबहुत्व गुणस्थान । प्रमाण सासावनसम्बम्हति असंख्यातगुणित सम्बमिध्यारह ___ संख्यातगुणित असंयतसम्पम्हति असंख्यातगुणित मिध्याति (मिध्याह असंयतसम्यम्हति अन्तर्मुहूर्त | देशोन ३१ सागरोपम भोपवत् चारों उपशामक सक्से कम संख्यातगुणित १० लेश्यामार्गणा (सासादनसम्यम्दृष्टि | ओघवत् | । सम्यनिमिध्यादृष्टि ओघवत् पल्योपम का असंख्या. भाग सयोगिकेवली भखामत्तसंयत प्रमत्तसंयत निरन्तर निरन्तर क्षायोपशमिक संयतासंबत असंख्यातगुणित शुल्क (संयतासंयत लेश्यावाले प्रमत्तसंयत अप्रमत्तसंयत अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त सासावनसम्यम्हाधि |एक समय वर्षपृथक्त्व औपशमिक तीन उपशामक उपशान्तकषाय (चारो क्षपक और सयोगिकेवली सम्बनिमिध्यापि मिथ्याधि असंयतसम्यम्रधि निरन्तर ओघवत् । संख्यातगुणित असंख्यातगुणित संख्यातगुणित ओघवत् | भोपवत् ओघवत् सायिक ११ ओघवत् भव्य अभव्य । निरन्तर ओघवत् ओघवत् पारिजामिक सर्वगुणस्थान गुणस्थानभेदाभाव ओघवत् अल्पबहुत्वाभाव निरन्तर भव्य मार्गणा अन्तर्मुहूर्त | देशोन पूर्वकोटि क्षायिक असंयतसम्यम्दृष्टि (संयतासंयत क्षायिक-प्रमत्तसंयत सम्बन्डष्टि अप्रमत्तसंयत सबसे कम संख्यातगुणित साधिक ३३ सागरोपम क्षायोपशमिक चारो उपशामक .क्षपक, आयोगि. सयोगिकेवली अप्रमत्तसंयत प्रमत्तसंयत संयतासंयत चारो उपशामक एक समय | वर्षपृथक्त्व मापशमिक
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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