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षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका
३२१ ___ इन पद्यों में मल्लिदेव नाम के एक सेनापति के दान-धर्म की प्रशंसा की गई है। उनके विषय में यहां केवल इतना ही कहा गया है कि वे बड़े दानशील और अनेक जैन मन्दिरों के निर्माता थे । तेरहवीं शताब्दि के प्रारंभ में मल्लिदेव नाम के एक सिन्द-नरेश हुए हैं। उनके एचण नाम के मंत्री थे जो जैनधर्म पालते थे और उन्होंने अनेक जैन मन्दिरों का निर्माण भी कराया था। उनकी पत्नि का नाम सोविलदेवी था।
__ (ए.क.७, लेख नं. ३१७, ३२० और ३२१). कर्नाटक के लेखों में तेरहवीं शताब्दी के एक मल्लिदेव का भी उल्लेख मिलता है जो होय्सलनरेश नरसिंह तृतीय के सेनापति थे । किन्तु इनके विषय में यह निश्चय नहीं है कि वे जैन धर्मावलम्बी थे या नहीं। श्रवणबेल्गोल के शिलालेख नं. १३० (३३५) में भी एक मल्लिदेव का उल्लेख आया है जो होय्सलनरेश वरिबल्लाल के पट्टणस्वामी व सचिव नागदेव
और उनकी भार्या चन्दव्वे (मल्लिसेट्टिकी पुत्री) के पुत्र थे। नागदेव जैनधर्मावलम्बी थे इसमें कोई संदेह नहीं, क्योंकि, उक्त लेख में वे नयकीर्ति सिद्धान्तचक्रवती के पदभक्त शिष्य कहे गये हैं और उन्होंने नगरजिनालय तथा कमठपार्श्वदेव बस्ति के सन्मुख शिल्लाकुट्टम और रंगशाला निर्माण कराई थी तथा नगर जिनालय को कुछ भूमि का दान भी किया था । मल्लिदेव की प्रशंसा में इस लेख में जो एक पद्य आया वह इस प्रकार है -
परमानन्ददिनेन्तु नाकपतिगं पौलोमिगं पुट्टिदों वरसौन्दर्य्यजयन्तनन्ते तुहिन-क्षीरोद-कल्लोल भासुरकीर्तिप्रियनागदेवविभुगं चन्दब्बेगं पुट्टिदों स्थिरनीपट्टणसामिविश्वनुतं श्रीमल्लिदेवाह्वयं ॥ १० ॥
अर्थात् 'जिस प्रकार इन्द्र और पौलोमी (इन्द्राणी) के परमानन्द पूर्वक सुन्दर जयन्त की उत्पत्ति हुई थी, उसी प्रकार तुहिन (वर्फ) तथा क्षीरोदधिकी कल्लोलों के समान भास्वर कीर्ति के प्रेमी नागदेव विभु और चन्दव्वे से इन स्थिरबुद्धि विश्वविनुत पट्टणस्वामी मल्लिदेव की उत्पत्ति हुई है ।" इससे आगे के पद्य में कहा गया है कि वे नागदेव क्षितितलपर शोभायमान हैं जिनके बम्मदेव और जोगब्बे माता-पिता तथा पट्टणस्वामी मल्लिदेव पुत्र हैं। यह लेख शक सं. १११८ (ईस्वी ११९६) का है, अत: यही काल पट्टणस्वामी मल्लिदेव का पड़ता है । अभी निश्चयत: तो नहीं कहा जा सकता, किन्तु संभव है कि यही मल्लिदेव हों जिनकी प्रशंसा धवला प्रति के उपर्युक्त दो पद्यों में की गई है।