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________________ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका जहां - (अप ज) जघन्य-युक्त-अनन्त (न यु ज ) = (अ प ज) मध्यम-युक्त-अनन्त (न यु म) है > न यु ज, किंतु < न यु उ उत्कृष्ट - युक्त - अनन्त (न यु उ) = न न ज - १ जहां - जघन्य-अनन्तानन्त (न न ज) = (न यु ज) २ मध्यम-अनन्तानन्त (न न म) > है न न ज, किंतु < न न उ - जहां - न न उ उत्कृष्ट अनन्तानन्त के लिये प्रयुक्त है, जो कि नेमिचंन्द्र के अनुसार निम्न प्रकार से प्राप्त होता है - + छह राशियाँ श: [ (मनज,न जा) (न ज, नज) ] [ (न ज(न जा) (कन जान जा) ] ब: { म झa } { (s a Ra }, दो राशियाँ २ ज्ञ = { (ज,बत्र } { (जत्र, अब, केवलज्ञान राशि ज्ञ से भी बड़ी है और - न न उ = केवलज्ञान - ज्ञ + ज्ञ = केवलज्ञान. पर्यालोचन – उपर्युक्त विवरण का यह निष्कर्ष निकलता है - १ छह राशियाँ ये हैं - (१) सिद्ध, (२) साधारण वनस्पति निगोद, (३) वनस्पति, (४) पुन्दल, (५) • व्यवहारकाल और (६) आलोकाकाश. २ ये दो राशियां हैं - (१) धर्मद्रव्य, (२) अधर्मद्रव्य, (इन दोनों के अगुरुलघु गुण के अविभागप्रतिच्छेद)
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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