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________________ ३१२ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका जहां - जघन्य-असंख्यातासंख्यात (अअ ज ) = (अ युज )२ मध्यम-असंख्यातासंख्यात (अ अ म ) है > अ अज, किन्तु < अ अ उ. उत्कृष्ट - असंख्यातासंख्यात (अ अ उ) = अपज - १. जहां - न प ज जघन्य-परीत-अनन्त का बोधक है। अनन्त- अनन्त श्रेणी की संख्याएं निम्न प्रकार हैं - जघन्य-परीत-अनन्त (न प ज) निम्न प्रकार से प्राप्त होता है - [{अअज)(अअज)} अग्रज (अजा)] क = [ {अअज)(अअज)} (अजा)(अज)] मानलो ख = क +छह द्रव्य (खख खख} + ४ राशियां मानलो ग = {(खख खख} तब जधन्य-परीत-अनन्त (न पज) ={ (ग) गग } { (ग") ग"} मध्यम-परीत-अनन्त (न प म) है > न प ज, किंतु < न प उ उत्कृष्ट-परीत-अनन्त (न प उ) = न युज - १, १ छह द्रव्य ये हैं - (१) धर्म, (२) अधर्म, (३) एक जीव, (४) लोकाकाश, (५) अप्रतिष्ठित (वनस्पति जीव) और (६) प्रतिष्ठित (वनस्पति जीव) २ चार समुदाय ये हैं - (१) एक कल्पकाल के समय, (२) लोकाकाश के प्रदेश (३) अनुभागबंध अध्यवसायस्थान और (४) योग के अविभाग-प्रतिच्छेद.
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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