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षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका
३११ ५ दससहस्स = १०,००० १९ अटट = (१०,०००,०००)२ ६ सतसहस्स = १००,००० २० सोगन्धिक = (१०,०००,०००)२ ७ दससतसहस्स = १,०००, ००० २१ उप्पल = (१०,०००,०००)१७ ८ कोटि = १०,०००,००० २२ कुमुद = (१०,०००,०००)५ ९ पकोटि = (१०,०००,०००)२ २३ पुंडरीक = (१०,०००,०००)१६ १० कोटिप्पकोटि = (१०,०००,०००) २४ पदुम = (१०,०००,०००)" ११ नहुत : (१०,०००,०००) २५ कथान = (१०,०००,०००)१८ १२ निन्नहुत : (१०,०००,०००) ५ २६ महाकथान = (१०,०००,०००)१९ १३ अखोभिनी : (१०,०००,०००) ६ २७ असंख्येय : (१०,०००,०००)" १४ बिन्दु : (१०,०००,०००)"
यहां देखा जाता है कि श्रेणिका में अन्तिम नाम असंख्येय है । इसका अभिप्राय यही प्रतीत होता है कि असंख्येय के ऊपर की संख्याएं गणनातीत है। . असंख्येय का परिमाण समय-समय पर अवश्य बदलता रहा होगा । नेमिचंद्र का असंख्यात उपर्युक्त असंख्येय से, जिसका प्रमाण १०१४० होता है, निश्चयत: भिन्न है ।
असंख्यात - ऊपर कहा ही जा चुका है कि असंख्यात के तीन मुख्य भेद हैं और उनमें से भी प्रत्येक के तीन-तीन भेद हैं । ऊपर निर्दिष्ट संकेतों के प्रयोग करने से हमें नेमिचंद्र के अनुसार निम्न प्रमाण प्राप्त होते हैं -
जघन्य-परीत-असंख्यात (अ प ज ) = स उ + १ मध्यम-परीत-असंख्यात (अप म ) है > अ प ज , किन्तु < अप उ. उत्कृष्ट - परीत - असंख्यात (अप उ) = अ यु ज - १
जहां -
जघन्य-युक्त-असंख्यात (अ युज ) - (अ प ज) अपज मध्यम-युक्त-असंख्यात (अ यु म) है > अ युज, किन्तु < अ यु उ. उत्कृष्ट-युक्त-असंख्यात (अ यु उ = अ अ ज - १.)