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षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका
२७९ किया जिससे उस राशि के एक जीव की मध्यम अर्थात् औसत अवगाहना संख्यात घनांगुल आगई । समस्त त्रस पर्याप्तराशि प्रतरांगुल के संख्यातवें भाग से भाजित जगप्रतरप्रमाण है और इसका केवल संख्यातवां भाग विहार करता है । अत: इस संख्यातवें भाग को पूर्वोक्त घनफल से गुणा करने पर विहारवत्स्वस्थान मिथ्यादृष्टिराशि का क्षेत्र संख्यात सूच्यंगुलगुणित जगप्रतरप्रमाण होता है, जो लोकका असंख्यातवां भाग और उसी प्रकार अधोलोक और ऊ
@लोक का भी असंख्यातवां भाग, तिर्यग्लोक का संख्यातवाँ भाग और मनुष्यलोक या अढाईद्वीप से असंख्यात गुणा होगा। २. स्पर्शनानुगम
स्पर्शनप्ररूपणा में यह बतलाया गया है कि भिन्न-भिन्न गुणस्थान वाले जीव, तथा गति आदि भिन्न-भिन्न मार्गणास्थानवाले जीव तीनों कालों में पूर्वोक्त दश अवस्थाओं द्वारा कितना क्षेत्र स्पर्श कर पाते हैं। इससे स्पष्ट है कि क्षेत्र और स्पर्शन प्ररूपणाओं में विशेषता इतनी ही है कि क्षेत्रप्ररूपणा तो केवल वर्तमानकाल की ही अपेक्षा रखती है, किन्तु स्पर्शनप्ररूपणा में अतीत और अनागतकाल का भी, अर्थात् तीनों कालों का क्षेत्रमान ग्रहण किया जाता है।
उदाहरणार्थ- क्षेत्रप्ररूपणा में सासादनसम्यग्दृष्टि जीवों का क्षेत्र लोक का असंख्यातवां भाग बताया गया है । यह क्षेत्र वर्तमानकाल से ही सम्बन्ध रखता है, अर्थात वर्तमान में इस समय स्वस्थानादि यथासंभव पदों को प्राप्त सासादनसम्यदृष्टि जीव लोक के असंख्यात में भागप्रमाण क्षेत्र को व्याप्त करके विद्यमान है । यही बात स्पर्शप्ररूपणा में वर्तमानकालिक स्पर्शन को बताते समय कही है। उसके पश्चात् दूसरे सूत्र में अतीतकाल सम्बंधी स्पर्शनक्षेत्र बतलाया गया है। कि सासादनसम्यग्दृष्टि जीवों ने अतीतकाल में देशोन आठ बटे चौदह (ट) और बारह बटे चौदह (३४) भाग स्पर्श किए हैं। इसका अभिप्राय जान लेना आवश्यक है । तीन सौ तेतालीस धनराजुप्रमित इस लोकाकाश के ठीक मध्य भाग में वृक्ष में सार के समान एक राजू लम्बी चौड़ी और चौदह राजु ऊंची लोकनाली अवस्थित है । इसे त्रसनाली भी कहते हैं, क्योंकि, त्रसजीवों का संचार इसके ही भीतर होता है। केवल कुछ अपवाद हैं, जिनमें कि इसके भी बाहर त्रसजीवों का पाया जाना संभव है । इस त्रसनाली के एक एक राजु लम्बे, चौड़े और मोटे भाग बनाए जावें तो चौदह भाग होते हैं। उनमें से जो जीव जितने धनराजु प्रमाण क्षेत्र को स्पर्श करता है, उसका उतना ही स्पर्शन क्षेत्र माना जाता है । जैसे प्रकृत में सासादनसमदृष्टियों का स्पर्शनक्षेत्र आठ बटे