SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 288
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका २६४ यथा ऋजुभूतमनोबुद्धिर्गुरुशुश्रूषणोद्यतः। जिनप्रवचनाभिज्ञः श्रावकः सप्तधोत्तमः ॥ १३.२. आगे चलकर उन्होंने गृहस्थ को आगम का अध्ययन करना भी आवश्यक बतलाया है आगमाध्ययनं कार्य कृतकालादिशुद्धिना। विनयारुढचित्तेन बहुमानविधायिना ॥१३, १०. गृहस्थ को स्वाध्याय के उपदेश में स्वाध्याय के पांच प्रकारों में वाचना, आम्नाय और अनुप्रेक्षा का भी विधान है। यथा - वाचना पृच्छनाऽऽम्नायानुप्रेक्षा धर्मदेशना। स्वाध्याय: पंचधा कृत्य: पंचमी गतिमिच्छता ॥१३, ८१ गृहस्थों को जहां तक हो सके स्वयं जिन भगवान् के वचनों का पठन और ज्ञान प्राप्त करना चाहिये, क्योंकि, उनके बिना वे कृत्याकृत्य-विवेक की प्राप्ति, व आत्म-अहित का त्याग नहीं कर सकते। जानात्यकृत्यं न जनो कृत्यं जैनेश्वरं वाक्यमबुद्धमानः। करोत्यकृत्यं विजहाति कृत्यं ततस्ततो गच्छति दुःखमुग्रम् ॥ १३, ८९ अनात्मनीनं परिहर्तुकामा ग्रहीतुकामाः पुनरात्मनीनम् । पठन्ति' शश्वज्जिननाथवाक्यं समस्तकल्याणविधायि संतः॥ १३, ९० यथार्थत: वे मूढ हैं जो स्वयं जिनभगवान के कहे हुए सूत्रों को छोड़कर दूसरों के वचनों का आश्रय लेते हैं। जिन भगवान के वाक्य के समान दूसरा अमृत नहीं है - सुखाय ये सूत्रमपास्य जैनं मूढाः श्रयंते वचनं परेषाम् । १३, ९१ विहाय वाक्यं जिनचन्द्रदृष्टं परं न पीयूषमिहास्ति किंचित् ॥१३, ९२ इत्यादि यशः कीर्तिकृत प्रबोधसार २ भी श्रावकाचारका उत्तम ग्रंथ है। इसमें गृहस्थों को उपदेश दिया गया है कि श्रुत के अभाव में तो समस्त शासन का नाश हो जायगा, अत: सब प्रयत्न करके श्रुत के सार का उद्धार करना चाहिये । श्रुत से ही तत्वों का परामर्श होता है और श्रुत से ही शासन की वृद्धि होती है । तीर्थंकरों के अभाव में शासन श्रुत के ही अधीन है, इत्यादि. १ सखाराम नेमचंद गंथमाला, सोलापुर, १९२८. २ अनन्तकीर्ति जैन ग्रंथमाला, बम्बई, १९७९.
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy