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________________ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका २५४ सिद्ध होता है ।श्रुतसागर जी कैसे लेखक थे और उनकी षट्पाहुड में कैसी-कैसी रचना है इसके विषय में एक विद्वान् समालेचकका मत देखिये । "वे (श्रुतसागर जी) कट्टरतो थे ही, असहिष्णु भी बहुत ज्यादा थे । अन्य मतों का खंडन और विरोध तो औरों ने भी किया है, परन्तु इन्होंने तो खण्डन के साथ बुरी तरह गालियाँ भी दी है। सबसे ज्यादा आक्रमण इन्होंने मूर्तिपूजा न करने वाले लोंकागच्छ (ढूंढियों) पर किया है । जरूरत गैरजरूरत जहां भी इनकी इच्छा हुई है, ये उन पर टूट पड़े हैं । इसके लिये उन्होंने प्रसंग की भी परवा नहीं की। उदाहरण के तौर पर हम उनकी षट्पाहुइटीका को पेश कर सकते हैं। षट्पाहुड भगवत्कुंदकुंद का ग्रंथ है, जो एक परमसहिष्णु, शान्तिप्रिय और आध्यात्मिक विचारक थे। उनके ग्रंथों में इस तरह के प्रसंग प्राय: हैं ही नहीं कि उनकी टीका में दूसरों पर आक्रमण किये जा सकें, परंतु जो पहले से ही भरा बैठा हो, वह तो कोई न कोई बहाना ढूंढ ही लेता है । दर्शनपाहुड की मंगलाचरण के बाद की पहली ही गाथा है - दंसणमूलों धम्मो उवइट्ठो जिणवरेहिं सिस्साणं। तं सोऊण सकण्णे दंसणहीणो ण वंदिव्वो॥ इसका सीधा अर्थ है कि जिनदेव ने शिष्यों को उपदेश दिया है कि धर्म दर्शनमूलक है, इसलिये जो सम्यग्दर्शन से रहित है उसकी वंदना नहीं करनी चाहिये । अर्थात, चारित्र तभी वन्दनीय है जब वह सम्यग्दर्शन से युक्त हो। इस सर्वथा निरुपद्रव गाथा की टीका में कलिकालसर्वज्ञ स्थानकवासियों पर बुरी तरह बरस पड़ते हैं और कहते हैं - - 'कौऽसौ दर्शनहीन इति चेत् तीर्थकरपरमदेवप्रतिमां न मानयन्ति, न पुष्पादिना पूजयन्ति ..... यदि जिनसूत्रमुलंघते तदाऽऽस्तिकैर्युक्तिवचनेन निषेधनीया: । तथापि यदि कदाग्रंह न मुञ्चन्ति तदा समर्थैरास्तिकै- रुपानद्भिः गूथालिप्ताभिर्मुखे ताडनीयाः, तत्र पापं नास्ति' । अर्थात्, दर्शनहीन कौन है, जो तीर्थकरप्रतिमा नहीं मानते, उसे पुष्पादि से नहीं पूजते ... जब ये जिनसूत्र का उलंघन करें तब आस्तिकों को चाहिए कि युक्तियुक्त वचनों से १ षट्प्राभृतादिसंग्रह (मा. ग्रं.मा.) भूमिका पृ. ७ २ जैनसाहित्य और इतिहास, पं. नाथूरामप्रेमी कृत पृ. ४०७ - ४०८
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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