SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 271
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४७ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका (ब) वे पाठभेद जो शब्द और अर्थ दोनों दृष्टियों से दोनों ही शुद्ध हैं, अतएव जो संभवत: प्राचीन प्रतियों के पाठभेदों से ही आये हैं। (देखो भा.३ परिशिष्ट पृ. २९ आदि) (स) वे पाठभेद जो प्राकृत में उच्चारण भेद से उत्पन्न होते हैं और विकल्प रूप से पाये जाते हैं । (देखो भा.३ परिशिष्ट पृ. ३२ आदि) (ड) वे पाठभेद जो अर्थ या शब्द की दृष्टि से अशुद्ध हैं और इस कारण ग्रहण नहीं किये जा सकते । (देखो भा.३ परिशिष्ट पृ.३२ आदि) इस श्रेणी-विभाग के अनुसार मूडबिद्री की प्रतियों का पाठ-मिलान इस भाग के साथ प्रकाशित हो रहा है । संक्षेप में यह पाठभेद - परिस्थिति इसप्रकार आती है - (अ) श्रेणी के पाठभेद भाग १ में ६२, भाग २ में २५ और भाग ३ में ६२, इस प्रकार कुल १४९ पाये गये हैं। भेद प्राय: बहुत थोड़ा है, और अर्थ की दृष्टि से तो अत्यन्त अल्प । यह इस बात से और भी स्पष्ट हो जाता है कि इन पाठभेदों के कारण अनुवाद में किंचित् भी परिवर्तन करने की आवश्यकता केवल भाग १ में १९, भाग २ में १० और भाग ३ में ३२, इस प्रकार कुल ६१ स्थलों पर पड़ी है। शेष ८८ स्थलों का पाठपरिवर्तन वांछनीय होने पर भी उससे हमारे किये हुए भाषानुवाद में कोई परिवर्तन आवश्यक प्रतीत नहीं हुआ। (ब) श्रेणी के पाठ भेदभाग १ में ३०, भाग २ में कोईनहीं, और भाग ३ में ३२, इस प्रकार कुल ६२ पाये गये, और इसमें भी किंचित् अनुवाद-परिवर्तन केवल प्रथम भाग में १७ स्थलों पर आवश्यक समझा गया है । । (स) श्रेणी के पाठभेद भाग १ से ६०, भाग २ में ३० और भाग ३ में ६७, इस प्रकार कुल १५७ पाये गये हैं। इनसे अर्थ में कोई भेद की तो संभावना ही नहीं है। इनमें के अधिकांश पाठ तो ऐसे हैं जो उपलब्ध प्रतियों में भी पाये जाते थे, किन्तु हमने प्राकृत व्याकरणके नियमों को ध्यान में रखकर परिवर्तित किये हैं। (देखिये 'पाठ संशोधन के नियम,' षट्खं. भाग१, प्रस्तावना पृ.१०-१३) (ड) श्रेणी के पाठभेद भाग १ में ३८, भाग २ में १५, भाग ३ में ६७, इस प्रकार कुल १२० पाये गये । इनमें के अधिकांश तो स्पष्ट: अशुद्ध हैं, और जहांउनके शुद्ध होने की संभावना हो सकती है, वहां टिप्पणी देकर स्पष्ट कर दिया गया है कि वे पाठ प्राकृत में क्यों नहीं ग्राहा हो सकते।
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy