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________________ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका २४६ वर्गमूल लेकर भाजक को कम कर वही भजनफल उत्पन्न कर दिखाया है । उपरिम विकल्प में निश्चित भाज्य व भाजक से ऊपर की अर्थात् वर्ग, घन व घनाघनरूप राशियां ग्रहण करके वही भजनफल उत्पन्न किया गया है । इस प्रक्रिया में धवलाकार ने तीन और विकल्प कर दिखाये हैं, गृहीत, गृहीतगृहीत, और गृहीतगुणकार। गृहीत तो सीधा है, अर्थात् उसमें ऊपर के भाज्य और भाजक के द्वारा निश्चित भजनफल उत्पन्न किया गया है । किन्तु गृहीतगृहीत में निश्चित भजनफल भी एक बड़ी राशि का भाजक बन जाता है और उसके लब्धका उसी भाजक में भाग देने से निश्चित भजनफल प्राप्त होता है । गृहीतगुणकार में निश्चित भजनफल का विवक्षित राशि में भाग देनेसे जो लब्ध आया उसका उसी भाजक राशि से गुण करके उत्पन्न हुए भजनफल का विवक्षित राशि के वर्ग में भाग देकर निश्चित भजनफल प्राप्त किया गया है । ये सब विकल्प वर्गात्मक राशियों में ही घटित होते हैं । इनका पूर्ण स्वरूप पृष्ठ ५२ से ८७ तक देखिये । प्रमाणराशि, फलराशि और इच्छाराशि, इनकी त्रैराशिक क्रिया का उपयोग जगह-जगह दृष्टिगोचर होता है । (भा. ३ पृ. ९५, १०० ) मनुष्यगति -प्रमाण के प्ररूपण में राशि दो प्रकार की बतलाई है ओज और युग्म । इनमें से प्रत्येक के पुन: दो विभाग किये गये हैं। किसी राशि में चार का भाग देने से यदि तीन शेष रहें तो वह तेजोज राशि, यदिएक शेष रहे तो कलिओज राशि, यदि चार शेष रहें ( अर्थात् कुछ शेष न रहे) तो कृतयुग्म राशि तथा यदि दो शेष रहें तो बादरयुग्म राशि कहलाती है। इनमें से मनुष्य राशि तेजोज कही गई है । (भा. ३ पृ. २४९) मूडबिद्री की ताड़पत्रीय प्रतियों के मिलान का निष्कर्ष यह तो पाठकों को विदित ही है कि इन सिद्धान्तग्रंथों की प्राचीन प्रतियां केवल एकमात्र मूडबिद्री क्षेत्र के सिद्धान्तमन्दिर में प्रतिष्ठित हैं । पूर्व प्रकाशित दो भागों के लिये हमें इन प्राचीन प्रतियों के पाठ - मिलान का सुअवसर प्राप्त नहीं हो सका था । किन्तु हर्ष बात है कि अब हमें वहां के भट्टारक स्वामी और पंचों का सहयोग प्राप्त हो गया है, जिसके फलस्वरूप ताड़पत्रीय प्रतियों से मिलाया जा चुका है और उससे जो पाठभेद हमें प्राप्त हुए हैं उन पर खूब विचार कर हमने उन्हें चार श्रेणियों में विभाजित किया है - (अ) वे पाठभेद जो अर्थ व पाठकी दृष्टि से अधिक शुद्ध प्रतीत हुए । (देखो भा. ३ परिशिष्ट पृ.२०)
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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