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________________ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका २३५ ७ ज्ञान मार्गणा (पृ. ४४२) कुमंति. | विभंग. | मति. | अवधि. | मन:पर्यय. केवल. | सर्व जीव कुरुत श्रुत. अनन्त असंख्य | असंख्य असंख्य | संख्यात | | अनन्त | अनन्त ८३२ | १ |१२८ .. । ६४ | ६४ ६४ । ६४ ६४ ८ संयम मार्गणा (पृ.४५१) असंयमी | देशसं. | सामा. यथाख्या. | परि.वि. | सू.सां. | सिद्ध | सर्वजीव छेदा. अनन्त | असंख्य संख्यात संख्यात | संख्यात | संख्यात | अनन्त | अनन्त १२८ ६४ ९ दर्शन मागृणा (पृ. ४५७) अचछु. | चक्षु. | अवधि. केवल | सर्वजीव अनन्त असंख्य असंख्य अनन्त | अनन्त ८३२ ६० १२८,६ ६४ कृष्ण. १० लेश्या मार्गणा (पृ. ४६६) नील. | कापोत. | पति. | पद्य. शुक्ल. अनन्त | अनन्त अनन्त | असंख्य | असंख्य | असंख्य ७६ अलेश्य सर्वजीव अनन्त | अनन्त १६ ४ यहां सिद्धों का प्रमाण १३ वें और १४ वें गुणस्थानों की राशियों से सातिरेक है। ५ यहां मिथ्यादृष्टियों का प्रमाण २ सरे, ३ सरे और ४ थे गुणस्थानों की राशियों से साधिक है। ६ यहां सिद्धों का प्रमाण १३ वें और १४ वें गुणस्थानों की राशियों से सातिरेक है। ७ यहां सिद्धों का प्रमाण १४ वें गुणस्थान राशि से सातिरेक है ।
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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