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________________ णमोकारमंत्र के सादित्व-अनादित्व का निर्णय । द्वितीय भाग की प्रस्तावना (पृ.३३ आदि) में हम प्रगट कर चुके हैं कि धवलाकार ने जीवट्ठाण खंड व वेदनाखंड के आदि में जो शास्त्र के निबद्धमंगल व अनिबद्धमंगल होने का विचार किया है उसका यह निष्कर्ष निकलता है कि जीवट्ठाण के आदि में णमोकारमंत्र रूप मंगल भगवान् पुष्पदंतकृत होने से यह शास्त्र निबद्धमंगल है, किन्तु वेदनाखंड के आदि में 'णमो जिणाणं' आदि नमस्कारात्मक मंगलवाक्य होने पर भी वह शास्त्र अनिबद्धमंगल है, क्योंकि वे मंगलसूत्र स्वयं भूतबलि की रचना न होकर गौतमगणधरकृत हैं । वेदनाखंड में भी निबद्धमंगल है, क्योंकि वे मंगलसूत्र स्वंय भूतबलि की रचना न होकर गौतमगणधरकृत हैं । वेदनाखंड में भी निबद्धमंगलत्व तभी माना जा सकता है, जब वेदनाखंड को महाकर्मप्रकृतिपाहुड मान लिया जाय और भूतबलि आचार्य को गौतम गणधर । अन्य किसी प्रकार से निबद्धमंगलत्व सिद्ध नहीं हो सकता । इस विवेचन से धवलाकार का यह मत स्पष्ट समझ में आता है कि उपलब्ध णमोकारमंत्र के आदि रचयिता आचार्य पुष्पदंत ही हैं। प्रथम भाग में उक्त विवेचनसंबन्धी मूलपाठ का संपादन व अनुवाद करते समय हस्तलिखित प्रतियों का जो पाठ हमारे सन्मुख उपस्थित था उसका सामञजस्य बैठाना हमारे लिये कुछ कठिन प्रतीत हुआ, और इसी से हमें यह पाठ कुछ परिवर्तित करके मूल में रखना पड़ा। तथापि प्रतियों का उपलब्ध पाठ यथावत् रूप से वहीं पादटिप्पण में दे दिया था। (देखो प्रथम भाग पृ. ४१) । किंतु अब मूडबिद्री की ताड़पत्रीय प्रति से जो पाठ प्राप्त हुआ है वह भी हमारे पादटिप्पण में दिये हुए प्रतियों के पाठ के समान ही है । अर्थात् - ___ “जो सुत्तस्सादीए सुत्तकत्तारेण कयदेवताणमोक्कारो तं णिबद्धमंगलं । जो सुत्तस्सादीए सुत्तकत्तारेण णिबद्धदेवताणमोक्कारो तमणिबद्धमंगलं " अब वेदनाखंड के आदि में दिये हुए धवलाकार के इसी विषयसम्बन्धी विवेचन के प्रकाश में यह पाठ समुचित जान पड़ता है । इसका अर्थ इस प्रकार होगा - “जो सूत्रग्रंथ के आदि में सूत्रकार द्वारा देवतानमस्कार किया जाता है, अर्थात् नमस्कार वाक्य स्वयं रचकर निबद्ध किया जाता है उसे निबद्धमंगल कहते हैं। और जो सूत्रग्रंथ के आदि में सूत्रकार द्वारा देवतानमस्कार निबद्ध कर दिया जाता है, अर्थात् नमस्कारवाक्य स्वयं न रचकर किसी अन्य आचार्य द्वारा पूर्वरचित नमस्कारवाक्य निबद्ध कर दिया जाता है, उसे अनिबद्धमंगल कहते हैं।"
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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