SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 225
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका २०१ एवं पगदिसमुक्कित्तणा समत्तं (त्ता)। जो सो सव्वबंधो णो सव्वबंधो.... इत्यादि। तथा 'एवं कालं समत्तं ' 'एवं अंतरं समत्तं ' इत्यादि । पं. लोकनाथ जी शास्त्री के शब्दों में इस रीति से भंगविचय, भागाभाग, परिमाण, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अंतर, भाव और अल्पबहुत्वा का वर्णन है '। अल्पबहुत्व की समाप्ति - पुष्पिका इस प्रकार है - एवं परत्थाणअद्धाअप्पाबहुगं समत्तं । एवं पगदिबंधो समत्तो। इस थोड़े से विवरण से ही अनुमान हो जाता है कि प्रस्तुत ग्रंथरचना महाबंध के विषय से सम्बन्ध रखती है । हम प्रथम भाग की भूमिका के पृष्ठ ६७ पर धवला और जयधवला के दो उद्धरण दे चुके हैं, जिनमें कहा गया है कि महाबंध का विषय बंधविधान के प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेश, इन चारों प्रकारों का विस्तारसे वर्णन करना है । इन प्रकारों का कुछ और विषय- विभाग धवला प्रथम भाग के पृष्ट १२७ आदि पर पाया जाता है जहां जीवट्ठाण की प्ररूपणाओं का उद्गम स्थान बतलाते हुए कहा गया है - .. बंधाविहाणं चउन्विहं । तं जहा - पयडिबंधो द्विदिबंधो अणुभागबंधो पदेसबंधो चेदि। तत्थ जो सो पयडिबंधो सो दुविहो, मूलपयडिबंधो उत्तरपयडिबंधो चेदि । तत्थ जो सो मूलपयडिबंधो सो थप्पो । जो सो उत्तरपयडिबंधो सो दुविहो, एगेगुत्तरपयडिबंधो अव्वोगढउत्तरपय डिबंधो चेदि । तत्थ जो सो एगेगुत्तर - पयडिबंधो तस्स चउवीस अणियोगद्दाराणि णादव्वाणि भवंति । तं जहा - समुक्कित्तणा सव्वबंधो णोसव्वबंधो ठक्कस्सबंधो अणुक्कस्सबंधो जहण्णबंधो अजहण्णबंधो सादियबंधो अणादियबंधो धुवबंधो अद्धवबंधो बंध-सामित्तविचयो बंधकालो बंधंतरं बंधसण्णियासो णाणाजीवेहि भंगविचयो भागाभागाणुगमो 'परिमाणाणुगमो खेत्ताणुगमो पोसणाणुगमो कालाणुगमो अंतराणुगमो भावाणुगमो अप्पाबहुगाणुगमो चेदि । यहां प्रकृतिबंध विधान के एकैकोत्तरप्रकृतिबंध के अन्तर्गत जो अनुयोगद्वार गिनाये गये हैं, उनमें से आदि के समुत्कीर्तना सर्वबंध और नोसर्वबंध, इन तीन, तथा अन्त के भंगविचयादि नौ अनुयोगद्वारों का उल्लेख महाधवला की उक्त ग्रंथरचना के परिचय में भी पाया जाता है । अत: यह भाग महाबंध के प्रकृतिबंधविधान अधिकार की रचना का अनुमान किया जा सकता है । यह प्रकृतिबंध ताड़पत्र ५० पर अर्थात् २३ पत्रों में समाप्त हुआ है ।
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy