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षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका
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शेष अठारहों अधिकारों की पंचिका करने वाले थे । शेष ग्रन्थभाग उक्त प्रति में छूटा हुआ है, या पंचिकाकार द्वारा ही किसी कारण से रचा नहीं पाया, इसका निर्णय वर्तमान में उपलब्ध सामग्री पर से नहीं हो सकता ।
यह पंचिका किसकी रची हुई है, कब रची गई, इत्यादि खोज की सामग्री का भी अभी अभाव है। पंचिका प्रति की अन्तिम प्रशस्ति निम्न प्रकार है -
श्री जिनपदकमलमधुव्रत -
ननुपम सत्पात्रदाननिरतं सम्य
क्त्वनिधानं कित्ते वधू -
मनसिजने शांतिनाथ नेसेदं धरेयोल् ॥
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धरे योल्. पुरजिदनुपमं चारुचारित्रनादुन्नतधैर्य सादिपर्यत रदिय नेनिसि पेंपिंगुणानीदिं सगक्तियादेशदिं सत्कर्मदा पंचियं विस्तरदिं श्रीमाघणं दिव्रतिगे बरेसिदं रागदिं शांतिनाथं ॥
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उदविदमुददिं सत्क - मंद पंजियननुपमाननिर्वाणसुख
प्रदमं बरेयिसि शान्तं
मदरहितं माघणंदियतिपतिगित्तं ॥
श्री माघनंदिसिद्धान्तदेवर्गे सत्कर्मपंजियं श्री मदुदयादित्यं प्रतिसमानं बरेदं ॥ मंगलं महा॥
पं. लोकनाथजी शास्त्री की सूचनानुसार इस " अन्तिम प्रशस्ति में दो तीन कानड़ी में कंदवृत्त पद्य हैं जो कि शान्तिनाथ राजा के प्रशंसात्मक पद्य हैं । उक्त राजा ने 'सत्कर्मपंचिका' को विस्तार से लिखवाकर भक्ति के साथ श्री माघनंद्याचार्यजी को दे दिया। प्रति लिखने वाला श्री उदयादित्य है ।"
इसके ताड़पत्रों की संख्या २७ और ग्रन्थ- प्रमाण लगभग ३७२६ श्लोक के हैं । ३. महाबंध - परिचय
मूडबिद्रीकी महाधवल नाम से प्रसिद्ध ताड़पत्रीय प्रति के पत्र २७ पर पूर्वोक्त सत्कर्मपंजिका समाप्त हुई है । २८ वां ताड़पत्र प्राप्त नहीं है। आगे जो अधिकार - समाप्ति की व नवीन अधिकार - प्रारंभ की प्रथम सूचना पाई जाती है वह इस प्रकार है