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षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका
१९९ अकम्माणं पयडि-ट्ठिदि-अणुभाग-पदेससत्ताणि परूवि सूचिदुत्तरपयडि-द्विदि-अणुभागपदेससत्तत्तादो । एदाणि सत्तकम्मपाहुडं णाम । मोहणीयं पडुच्च कसायपाहुडं पि होदि। (सत्कर्मपंचिका)
___यहां उपक्रम के चार भेदों काउल्लेख करके प्रथम बंधन उपक्रम के, पुनः प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेश रूप चार प्रभेदों के विषय में यह बतलाया गया है कि इनका अर्थ जिस प्रकार संतकम्मपाहुड में किया गया है उस प्रकार करना चाहिए । उस संतकम्मपाहुड से भी प्रकृत में वेदनानुयोगद्वार के तीन और प्रकृति अनुयोगद्वार के चार अधिकारों से अभिप्राय है। यहां भी पंचिकाकार स्पष्टत: धवलाके निम्न उल्लिखित प्रकरण का विवरण कर रहे हैं -
जो सो कम्मोवक्कमो सो चउव्विहो, बंधणउवक्कमो उदीरणउवक्कमो उवसामणउवक्कमो विपरिणामउवक्कमो चेदि...... जो सो बंधणउवक्कमो सो चउन्विहो, पयडिबंधणउवक्कमो ठिदिबंधणउवक्कमो अणुभागबंधणउवक्कमो पदेसबंधणउवक्कमो चेदि। ....... एत्थ एदेसिं चउण्हमुवक्कमाणं जहा संतकम्मपयडिपाहुडे परूविदं तहा परूवेयव्वं । जहा महाबंधे परूविदं, तहा परूवणा एत्थ किण्ण करीदे ? ण, तस्सपढमसमयबंधम्मि चेव वावारादो । ण च तमेत्थ वोत्तुं जुत्तं, पुणरुत्तदोसपपसंगादो । (धवला क.पत्र१२६०)
___ यहां जो बंधन के चारों उपक्रमों का प्ररूपण महाबंध के अनुसार न करके संतकम्मपाहुड के अनुसार करने का निर्देश किया गया है, उसी का पंचिकाकारने स्पष्टीकरण किया है कि महाकम्मपयडिपाहुड के किन किन विशेष अधिकारों से यहां संतकम्मपाहुड पदद्वारा अभिप्राय है।
पंचिका में उपक्रम अधिकार के पश्चात् उदयअनुयोगद्वार का कथन है जैसा उसके अन्तिम भाग के अवतरण से सूचित होता है । या -
उदयणियोगद्दारं गदं ।
यहां के कोई विशेष अवतरण हमें उपलब्ध नहीं हुए। अत: धवला से मिलान नहीं किया जा सका । तथापि उपक्रम के पश्चात् उदय अनुयोग द्वार का प्ररूपण तो है ही । उक्त पंचिका यहीं समाप्त हो जाती है। इससे जान पड़ता है कि इस पंचिका में केवल निबंधन, प्रक्रम, उपक्रम और उदय, इन्हीं चार अधिकारों का विवरण है । शेष मोक्ष आदि चौदह अनुयोगों का उसमें कोई विवरण यहां नहीं है। इससे जान पड़ता है कि यह पंचिका भी अधूरी ही है, क्योंकि पंचिका की उत्थानिका में दी गई सूचना से ज्ञात होता है कि पंचिकाकार