SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 222
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका १४ सगसेसछप्पण्णबंधपयडिसूचयणमिदि । चउसट्ठिपयडीणमप्याबहुगं गंथयारेहि परूविद। अम्हेहि पुणोसूचिदपयडीणमप्पाबहुगं गंथउत्तप्पाबहुगबलेण परूविदं । ....... एवं पक्कामाणिओगो गदो। आगे चलकर पुन: आया है - एत्थएयडीसु जहण्णपक्क मदव्वाणं अप्पाबहुगं उच्चदे । तं जहासव्वत्थोवमपञ्चक्खाणमाणे पक्कम - दव्वं । कुदो ? इत्यादि । यहां उपर्युक्त निबंधन अधिकार के पश्चात् प्रक्रम अधिकार का प्रारम्भ बतलाया है और क्रमश: उसके उत्कृष्ट और जघन्य प्रक्रम द्रव्य के अल्पबहुत्व का कथन किया है, तथा इस बात की सूचना की है कि चौंसठ प्रकृतियों का अल्पबहुत्व ग्रन्थकार ने स्वयं कर दिया है, अत: हम यहां केवल उनके द्वारा सूचित प्रकृतियों का अल्पबहुत्व उक्त ग्रंथोक्त अल्पबहुत्व के बलसे करते हैं। धवला में भी निबंधन अनुयोगद्वार के पश्चात् आठवें अनुयोग प्रक्रम का वर्णन है, और वहां उत्तर प्रकृति प्रक्रम के उत्कृष्टउत्तरप्रकृतिप्रक्रम और जघन्यउत्तरप्रकृतिप्रक्रम ऐसे दो भेद करके वर्णन प्रारम्भ किया गया है। तथा वहां वह सब अल्पबहुत्व पाया जाता है जो पंचिकाकारने स्वीकार किया है और जिसके सम्बन्ध में शंकादि उठाकर उचित समाधान किया है। ___ उत्तरपयडिपक्कमो दुविहो, उक्कस्सउत्तरपयडिपक्कमो जहण्णउत्तरपयडिपक्कमो चेदि । तत्थ उक्कससए एयदं सव्वत्थोवं अपच्चक्खाणकसायमाणपदेसग्गं । अपच्चक्खाणकोधे विसेसाहिया । ...... जहण्णए पयदं । सव्वत्थोवमपच्चक्खाणमाणे पक्कमदव्वं । कोधे विसेसाहिया। . एवं पक्कमे त्ति समत्तमणिओगद्दारं । (धवला क. प्रति, पत्र १२६६-६७) प्रक्रम अधिकार के पश्चात् पंचिका में उपक्रम का वर्णन इस प्रकार प्रारंभ होता है उवक्कमो चउन्विहो-बंधणोवक्कमो उदीरणोवक्कमोउवसामणोवक्कमो विपरिणामोवक्कमो चेदि । तत्थ बंधणोवक्कमो चउव्विहो पडि-ट्ठिदि-अणुभागपदेसबंधणोवक्कमणभेदेण । पुणो एदेसिं चउण्णं पि बंधणो वक्कमाणं अत्थो जहा सत्तकम्मपाहुडम्मि उत्तो तहा वत्तव्वो । सत्तकम्मपाहुडम्मि णाम कदमं ! महकम्मपयडिपाहुडसस चउव्वीसमणियोगद्दारेसु विदियाहियारो वेदणा णाम । तस्स सोलसाणियोगद्दारेसु चउत्थ-छट्टम-सत्तमणियोगद्दाराणि दव्व-काल-भावविहाणणामधेयाणि। पुणो तहा महाकम्मपयडिपाहुडस्स पंचमो पयडिणामाहियारो । तत्थ चत्तारि अणियोगद्दाराणि
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy