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षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका
१९५ धवला के दोनों भागोंकी भूमिकाओं में यथास्थान उद्धृत किया जा चुका है, तथापि वह उक्त रिपोर्ट पर से लिया गया था, और कुछ त्रुटित था । अब यह अवतरण हमें इस प्रकार प्राप्त हुआ है।
बोच्छामि सत्तकम्मे पंचियरूवेण विवरणं सुमहत्थं
" महाकम्मपयडिपाहुडस्स कदिवेदणाओ (दि-) चउव्वीसमणियोगद्दारेसु तत्थ कदिवेदणा त्ति जाणिअणियोगद्दाराणि वेदणाखंडम्हि, पुणो पास.कम्म-पयडि-बंधण चत्तारि अणियोगद्दारेसु तत्थ बंध-बंध-णिज्जणामणियोगेहि सह वग्गणाखंडम्हि, पुणो बंधविधाणणामणियोगो महाबंधम्मि, पुणो बंधगणियोगो खुद्दा-बंधम्हि सप्पवंचेण परूविदाणि। पुणो तेहितो सेसहारसाणियोगद्दाराणि सत्तकम्मे सव्वाणि परूविदाणि । तो वि तस्साइगंभीरत्तादो अत्थविसमपदाणमत्थे थोरुद्धयेण पंचियसरूवेण भणिस्सामो ।"
इस उत्थानिका से सिद्धान्त ग्रन्थों के सम्बन्ध में हमें निम्नलिखित अत्यन्त उपयोगी और महत्वपूर्ण सूचनाएं बहुत स्पष्टता से मिल जाती हैं -
१ महाकर्मप्रकृति पाहुड के चौबीस अनुयोगद्वारों में से प्रथम दो अर्थात् कृति औरवेदना, वेदनाखंड के अन्तर्गत रचे गये हैं। फिर अगले स्पर्श, कर्म, प्रकृति और बंधन के चार भेदों में से बंध और बंधनीय वर्गणाखंड के अन्तर्गत हैं । बंधविधान महाबंध का विषय है, तथा बंधक खुद्दाबंध खंड में सन्निहित है । इस स्पष्ट उल्लेख से हमारी पूर्व बतलाई हुई खंड-व्यवस्था की पूर्णत: पुष्टि हो जाती है, और वेदनाखंड के भीतर चौबीसों अनुयोगद्वारों को मानने तथा वर्गणाखंड को उपलब्ध धवला की प्रतियों के भीतर नहीं मानने वाले मत का अच्छी तरह निरसन हो जाता है।
२ उक्त छह अनुयोगद्वारों से शेष अठारह अनयोगद्वारों की ग्रन्थरचना का नाम सत्तकम्म (सत्कर्म) है, और इसी सत्कर्म के गंभीर विषय को स्पष्ट करने के लिए उसके थोड़े थोड़े अवतरण लेकर उनके विषम पदों का अर्थ प्रस्तुत ग्रंथ में पंचिकारूप से समझाया गया है।
अब प्रश्न यह उपस्थिति होता है कि शेष अठारह अनुयोगद्वारों से वर्णन करने वाला यह सत्कर्म ग्रन्थ कौन सा है ? इसके लिए सत्कर्मपंचिका का आगे का अवतरण देखिए; जो इस प्रकार है -
तं जहा । तत्र ताव जीवदव्वस्स पोग्गलदव्वमवलंबिय पज्जायेसु परिणमणाविहाणं उच्चदे-जीवदव्वं दुविहं, संसारिजीवो मुक्कजीवो चेदि । तत्थमिच्छत्तासंजमकसायजोगेहि