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षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका
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तथा जयधवल में यह सूचना पाई जाती है कि महाबंध स्वयं भूतबलि आचार्य का रचा हुआ ग्रन्थ है, उसमें बंधविधान के चार प्रकारों प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेश का खूब विस्तार से वर्णन किया गया है, तथा वह वर्णन इतना विशद और सर्वमान्य हुआ कि यविवृषभ और वीरसेन जैसे आचार्यो ने अपनी-अपनी ग्रन्थरचना में उसकी सूचनामात्र दे देना पर्याप्त समझा; उस विषय पर कुछ विशेष कहने की उन्हें गुंजाइश नहीं दिखी।
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इस महाबंध की अभी तक कोई प्रति प्रकाश में नहीं आई । किन्तु हम सब यह आशा करते रहे हैं कि मूडबिद्री के सिद्धान्त भवन में जो महाधवल नाम की कनाडी प्रति ताड़पत्रों पर तृतीय सिद्धान्तग्रन्थ रूप से सुरक्षित है, वही भूतबलिकृत महाबंध ग्रन्थ है । इस आशा का आधार अभी तक केवल हमारा अनुमान ही था, क्योंकि न तो कोई परीक्षक विद्वान् उस प्रति का अच्छी तरह अवलोकन कर पाया था और न किसी ने उसके कोई विस्तृत अवतरण आदि देकर उसका सुपरिचय ही कराया था। उस प्रति का जो कुछ थोड़ासा परिचय उपलब्ध हुआथा, वह मूड़ बिद्रीके पं. लोकनाथजी शास्त्री की कृपा से उनके वीरवाणीविलास जैन सिद्धान्तभवन की प्रथम वार्षिक रिपोर्ट (१९३५) के भीतर पाया जाता था । उस परिचय में दिये गये महाधवल प्रति के प्रारंभिक भाग के सूक्ष्म अवलोकन से मुझे ज्ञात हुआ कि वह ग्रन्थ रचना महाबंध खंड की नही है, किन्तु संतकम्म के अन्तर्गत शेष अठारह अनुयोगद्वारों की एक पंचिका है, जिसेउसके कर्ता ने 'पंचियरूवेण विवरणं सुमहत्थं' कहा है। उन अवतरणों से महाबंध का कहीं कोई पता नहीं चला। मैंने अपनी इस आशंका को एक लेख के द्वारा प्रकट किया और इस बातकी प्रेरणा की कि महाधवल की प्रतिका शीघ्र ही पर्यालोचन किया जाना चाहिए और महाबंध का पता लगाने का प्रयत्न करना चाहिये । इस लेखके फलस्वरूप मूडबिद्री मठ के भट्टारकस्वामी व पंचों ने उस प्रति की जांच की व्यवस्था की, और शीघ्र ही मुझे तार द्वारा सूचित किया कि महाधवल प्रति के भीतर सत्कर्मपंचिका भी है, और महाबंध भी है। तत्पश्चात् वहां से पं. लोकनाथजी शास्त्री द्वारा संग्रह किये हुये उक्त प्रति में के अनेक अवतरण भी मुझे प्राप्त हुए, जिन पर से महाधवल प्रति के अंन्तर्गत ग्रन्थरचना का यहां कुछ परिचय कराया जाता है ।
२. सत्कर्मपंचिका परिचय
महाधवल प्रति के अन्तर्गत ग्रन्थरचना के आदि में 'संतकम्मपंचिका' है, जिसकी उत्थानिका का अवतरण अनेक दृष्टियों से महत्वपूर्ण है । यद्यपि यह अवतरण पूर्व प्रकाशित