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________________ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका १७६ असंख्य होते गये। फिर दो लाख निर्वाण को, फिर दो लाख सर्वार्थसिद्धि को, फिर तीन तीन लाख । इस प्रकार से दोनों ओर यह संख्या भी असंख्य तक पहुंच गई । यह सब चित्रान्तरगंडिका में दिखाया गया था । उसके आगे चार प्रकार की और चित्रान्तरगंडिकायें थीं - एकादिका एकोत्तरा, एकादिका दुयुत्तरा, एकादिका व्युत्तरा और ब्यादिका द्वयादिविषयोत्तरा, जिनमें भी और और प्रकार से मोक्ष और सर्वार्थसिद्धि को जाने वालों की संख्याएं बतायीं गई थीं। जान पड़ता है, इन सब संख्याओं का उपयोग अनुयोग के विषय की अपेक्षा गणित की भिन्न-भिन्न धाराओं के समझाने में ही अधिक होता होगा। चूलिका पांच चूलिकाओं के अन्तर्गत विषय प्रथम चार पूर्वो की चूलिकाएं १. जलगया - जलगमण - जलत्थंभणही इसके अन्तर्गत हैं। उन चूलिकाओं की कारण-मंत-तंत-तपच्छरणाणि वण्णेदि। संख्या ४+ १२+ ८+१० : ३४ है । २. थलगया - भूमिगमणकारण-मंत-तंत तव-च्छरणाणिवत्थुविजं भूमिसंबंधमण्णं पि सुहा-सुहकारणं वण्णेदि। ३. मायागया - इंदजालं वण्णेदि ४. रूवगया - सीह - हय - हरिणादि - रूवायारेण परिणमणहेदु - मंत-तंत - तवच्छरणाणि चित्त - कट्ठ - लेप्प - लेणकम्मादि - लक्खणं च वण्णेदि। ५. आयासगया - आगासगमणणिमित्त मंत-तंत-तवच्छरणाणि वण्णेदि। श्वेताम्बर ग्रंथों में यद्यपि चूलिका नाम का दृष्टिवाद का पांचवा भेद गिना गया है, किन्तु उसके भीतर न तो कोई ग्रंथ बताये गये और न कोई विषय, केवल इतना कह दिया गया है कि - से किं तं चूलिआओ ? चूलिआओ आइलाणं चउण्हं पुव्वाणं चूलिआ, सेसाई पुन्वाइं अचूलिआई, से तं चूलिआओ। अर्थात् प्रथम चार पूर्वो की जो चूलिकाएं बता आये हैं वे ही चूलिकाएं यहां गिन लेना चाहिये । किन्तु, यदि ऐसा है तो चूलिका को पूर्वो का ही भेद रखना था, दृष्टिवाद का
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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