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षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका
१६५ ___एक आधुनिक मत ' यह भी है कि पूर्वो में महावीर स्वामी से पूर्व और उनके समय में प्रचलित मत-मतान्तरों का वर्णन किया गया था, इस कारण वे पूर्व कहलाये । - चौदह पूर्वो के नामों में दोनों सम्प्रदायों में कोई विशेष भेद नहीं है, केवल ग्यारहवें पूर्व को श्वेताम्बर 'अवंझ' कहते हैं और दिगम्बर 'कल्लाणवाद' । अबंझंगा जो अर्थ टीकाकार ने अवंध्य अर्थात् 'सफल' बतलाया है वह 'कल्याण' के शब्दार्थ के निकट पहुंच जाता है, इससे संभवत: वह उनके विषयभेद का द्योतक नहीं है । छठवें, आठवें, नवमें और ग्यारह से चौदहवें तक इस प्रकार सात पूर्यों के अन्तर्गत वस्तुओं की संख्या में दोनों सम्प्रदायों में मतभेद हैं। शेष सात पूर्वो की वस्तु-संख्या में कोई भेद नहीं है । श्वेताम्बर मान्यता में प्रथम चार पूर्वो के अन्तर्गत वस्तुओं के अतिरिक्त चलिकाओं की संख्या भी दी गई हैं. और दृष्टिवाद के पंचमभेद चूलिका के वर्णन में कहा है कि वहां उन्हीं चार पूर्वो की चूलिकाओं से अभिप्राय है । यदि ये चूलिकाएं पूर्वो के अन्तर्गत थीं, तो यह समझ में नहीं आता कि उनका फिर एक स्वतंत्र विभाग क्यों रखा गया । दिगम्बरीय मान्यता में पूर्वो के भीतर कोई चूलिकाएं नहीं गिनायी गई और चूलिका विभाग के भीतर जो पांच चूलिकाएं बतलायी हैं उनका प्रथम चार पूर्वो से कोई संबंध भी ज्ञात नहीं होता।
समवायांग और नन्दीसूत्र में पूर्वो के अन्तर्गत वस्तुओं और चूलिकाओं की संख्यासूचक निम्न तीन गाथाएं पाई जाती हैं -
दस चोद्दस अट्ठारसेव बारस दुबे या वत्थूणि । सोलह तीसा वीसा पण्णरस अणुप्पवायंमि ॥१॥ बारस एक्कारसमे तेरसेव वत्थूणि। तीसा पुण तेरसमे चउदसमे पन्नवीसाओ॥२॥ चत्तारि दुवालस अट्ठ चेव दस चेव चूलवत्थूणि । आइल्लाण चउण्हं सेसाणं चूलिया णत्थि ॥ ३॥
धवला में (वेदनाखंड के आदि में ) पूर्वो के अन्तर्गत वस्तुओं और वस्तुओं के अन्तर्गत पाहुडों की संख्या की द्योतक निम्न तीन गाथाएं पाई जाती हैं -
दस चोद्दस अट्ठारस (अट्ठट्ठारस) वारस य दोसु पुब्बेसु । सोलस वीसं तीसं दसमंमि य पण्णरस वत्थू ॥१॥
१ डॉ. जैकोबी कल्पसूत्रभूमिका.