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षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका
१३९ पड़े हैं । यथार्थत: प्राचीन कन्नड़ लिपि में हृश्व और शीर्घ स्वरों में बहुधा विवेक नहीं किया जाता था । हमारे अनुमान किये हुए सुधार के साथ पढ़ने से पूर्वोक्त समस्त प्रकरण व शंका-समाधानक्रम ठीक बैठ जाता है । उससे उक्त दो अवतरणों के बीच में आये हुए उन शंका समाधानों का अर्थ भी सुलझ जाता है जिनका पूर्वकथित अर्थ से बिल्कुल ही सामन्जस्य नहीं बैठता बल्कि विरोध उत्पन्न होता है । वह पूरा प्रकरण इस प्रकार है -
उवरि उच्चमाणेसु सुि खंडेसु कस्सेदं मंगलं ? तिण्णं खंडाणं । कुदो ? बग्गणामहाबंधाणमादीए मंगलाकरणादो । ण च मंगलेण विणा भूतबलिभढारओ गंथस्स पारभदि, तस्स अणाइरियत्तपसंगादो । कधं वेयणाए आदीए उत्तं मंगलं सेस-दो-खंढाणं होदि ? ण, कदीए आदिम्हि उत्तस्स एदस्सेव मंगलस्स सेसतेवीस अणियोगद्दारेसु पउत्तिदंसणादो । महाकम्मपयडिपाहुडत्तेण चउवीसहमणियोगद्दाराणं भेदाभावादो एगत्तं, तदो एगस्स एवं मंगलं तत्थ ण विरुज्झदे । ण च एदेसिं तिण्हं खंडाणमेयत्तमेगखंडत्तपसंगादो त्ति, ण एस दोसो, महाकम्मपयडिपाहुडत्तणेण एदेसि पि एगत्तदंसणादो । कदि-पास-कम्म-पयडिअणियोगद्दाराणि वि एत्थ परूविदाणि, तेसिं खंडग्गंथसणणमकाऊण तिण्णि चेब खंडाणि त्ति किमहूं उच्चदे ण, तेसिं पहाणत्ताभावादो । तं पि कुदो णब्बदे ? संखेवेण परूवणादे ।
इसका अनुवाद इस प्रकार होगा -
शंका - आगे कहे जाने वाले तीन खंडों (वेदना वर्गणा और महाबंध) में से किस खंड का यह मंगलाचरण है ?
समाधान - तीनों खंडों का ! ... शंका - कैसे जाना ?
समाधान - वर्गणाखंड और महाबंध खंड के आदि में मंगल न किये जाने से । मंगल किये बिना तो भूतबलि भट्टारक ग्रंथ का प्रारंभ ही नहीं करते क्योंकि इससे अनाचार्यत्व का प्रसंग आ जाता है।
शंका- वेदना के आदि में कहा गया मंगल शेष दो खंडों का भी कैसे हो जाता है?
समाधान - क्योंकि कृति के आदि में किये गये इस मंगल की शेष तेबीस अनुयोग द्वारों में भी प्रवृत्ति देखी जाती है।
शंका - महाकर्मप्रकृति पाहुडत्व कीअपेक्षा से चौबीसों अनुयोग द्वारों में भेद न १. डा. उपाध्ये, परमात्मप्रकाश, भूमिका, पृ. ८३.