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________________ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका १३६ द्वारा शेष लिखाई भी ईमानदारी के साथ किये जाने की आशा नहीं की जा सकती। पर उक्त लेखक का अभी तक हम जो परिचय धवलापर परिश्रम करके प्राप्त कर सके हैं, उस पर से हम दृढ़ता के साथ कह सकते हैं कि उसने अपना कार्य भरसक ईमानदारी और परिश्रम से किया है । उस पर से उसके द्वारा एक खंड को छोड़कर ग्रंथ को पूरा प्रकट कर देने जैसे छल-कपट किये जाने की शंका करने को हमारा जी बिल्कुल नही चाहता । पर यदि ऐसा छल कपट हुआ है तो धवला की जांच द्वारा उसका पता लगाना भी कठिन नहीं होना चाहिये । धवला की कुल टीका का प्रमाण इन्द्ररनन्दिने बहत्त हजार और ब्रह्माहेमने सत्तर हजार बतलाया है । हमारे सन्मुख धवला की तीन प्रतियां मौजूद हैं, जिनकी श्लोक संख्या की हमने पूरी कठोरता से जांच की। अमरावती की प्रति में १४६५ पत्र अर्थात् २९३० पृष्ठ हैं और प्रत्येक पृष्ठ पर १२ पंक्तियां लिखी गई हैं। प्रत्येक पंक्ति में ६२ से ६८ तक अक्षर पाये जाते हैं जिससे औसल ६५ अक्षरों की ली जा सकती है। तदनुसार कुल ग्रंथ में २९३० ४ १२ १६५ - २२८५४०० अक्षर पाये जाते हैं जिनकी श्लोकसंख्या ३२ का भाग देकर ६१,४१५ आई । इसे सामान्य लेखे में चाहे आप सत्तर हजार कहिये, चाहे बहत्तर हजार । कारंजा व आराकी प्रतियों की भी उक्त प्रकार से जांच द्वारा प्राय: यही निष्कर्ष निकलता है। इससे तो अनुमान होता है कि प्रतियों में से एक खंड का खंड गायब होना असंभव सा है, क्योंकि उस खंड का प्रमाण और सब खंडों को देखते हए कम से कम पांच सात हजार तो अवश्य रहा होगा । यह कमी प्रस्तुत प्रतियों में दिखाई दिये बिना नहीं रह सकती थी। विषय के तारतम्य की दृष्टि से भी धवला अपने प्रस्तुत रूप से अपूर्ण कहीं नजर नहीं आती । प्रथम तीन खंड तो पूरे हैं ही । चौथे वेदना खंड के आदि से कृति आदि अनुयोगद्वार प्रारम्भ हो जाते हैं । इनमें प्रथम छह कृति, वेदना, फास, कम्म, पयडि और बंधन स्वयं भगवान् भूतबलि-द्वारा प्ररूपित हैं । इनके अन्त में धवलाकारने कहा है - 'भूदबलिभडारएण जेणेदं सुत्तं देसामासियभावेण लिहिदं तेणेदेण सूचिद-सेसअट्ठारस- अणि - योगद्दाराणं किंचि संखेवेण परूवणं कस्सामो (धवला अ.पत्र १३३२ ) इससे स्पष्ट ज्ञात होता है कि आचार्य भूतबलिकी रचना यहीं तक है । किन्तु उक्त प्रतिज्ञा वाक्य के अनुसार शेष निबन्धनादि अठारह अधिकारों का वर्णन धवलाकार ने स्वयं किया है और अपनी इस रचना को उन्होंने चूलिका कहा है - एत्तो उबरिमगंथो चूलिया णाम ।
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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