________________
वर्गणाखंड - विचार षट्खंडागम के छह खंडों का परिचय मुखबन्ध में कराया जा चुका है । वहां वह बतलाया गया है कि उन छह खंडों में से प्रथम पांच अर्थात् जीवट्ठाण, खुद्दाबंध, बंधसामित्तविचय, वेदणा और बग्गणा उपलब्ध धवला की प्रतियों में निबद्ध हैं तथा शेष छठवां अर्थात् महाबंध स्वतंत्र पुस्तकारूढ़ है, जिसकी प्रतिलिपि अभी तक मूडविद्री मठ के बाहर उपलब्ध नहीं है । इनमें से चार खंडों के सम्बन्ध में तो कोई मतभेद नहीं है, किन्तु वेदना और वर्गणा खंड की सीमाओं के सम्बंध में एक शंका उत्पन्न की गई है जो यह है कि "धवलग्रंथ वेदना खंड के साथ ही समाप्त हो जाता है - वर्गणाखंड उसके साथ में लगा हुआ नहीं है"। इस मत की पुष्टि में जो युक्तियां दी गई हैं वे संक्षेपत: निम्न प्रकार हैं -
१. जिस कम्मपयडिपाहुड के चौबीस अधिकारों का पुष्पदन्त-भूतबलिने उद्वार किया है उसका दूसरा नाम 'वेयणकसिणपाहुड' भी है जिससे उन २४ अधिकारों का 'वेदनाखंड' के ही अंतर्गत होना सिद्ध होता है।
२. चौबीस अनुयोग द्वारों में वर्गणा नाम का कोई अनुयोगद्वार भी नहीं है । एक अवान्तर अनुयोगद्वार के भी अवान्तर भेदान्तर्गत संक्षिप्त वर्गणा प्ररूपणा को 'वर्गणाखंड' कैसे कहा जा सकता है ?
३. वेदनाखंड के आदि के मंगलसूत्रों की टीका में वीरसेनाचार्य ने उन सूत्रों को उपर कहे हुए वेदना, बंधसामित्तविचय और खुद्दाबंध का मंगलाचरण बतलाया है और यह स्पष्ट सूचना की है कि वर्गणाखंड के आदि में तथा महाबंधखंड के आदि में पृथक् मंगलाचरण किया गयाहै उपलब्ध धवला के शेष भाग में सूत्रकारकृत कोई दूसरा मंगलाचरण नही देखा जाता, इससे वहवर्गणाखंड की कल्पना गलत है।
४. धवला में जो 'वेयणाखंड समत्ता' पद पाया जाता है वह अशुद्ध है। उसमें पड़ा हुआ 'खंड' शब्द असंगत है जिसके प्रक्षिप्त होने में कोई सन्देह मालूम नहीं होता ।
५. इन्द्रनन्दि व विबुधश्रीधर जैसे ग्रंथकारों ने जो कुछ लिखा है वह प्राय: किंवदन्तियों अथवा सुने सुनाये आधार पर लिखा जान पड़ता है । उनमे सामने मूल ग्रंथ नहीं थे, अतएव उनकी साक्षी को कोई महत्व नहीं दिया जा सकता ।
६. यदि वर्गणाखंड धवला के अन्तर्गत था तो यह भी हो सकता है कि लिपिकार ने