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षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका
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शीघ्रता वश उसकी कापी न की हो और अधूरी प्रति पर पुरस्कार न मिल सकने की आशंका से उसने ग्रंथ की अन्तिम प्रशस्ति को जोड़कर ग्रंथ को पूरा प्रकट कर दिया हो ।' ___अब हम इन युक्तियों पर क्रमश: विचार कर ठीक निष्कर्ष पर पहुंचने का प्रयत्न
करेंगें।
१. वेयणकसिणपाहुड और वेदनाखंड एक नहीं हैं।
यह बात सत्य है कि कम्मपयडिपाहुड का दूसरा नाम वेयणकसिणपाहुड भी है और यह गुण नाम भी है, क्योंकि वेदना कर्मों के उदय को कहते हैं और उसका निरवशेषरूप से जो वर्णन करता है उसका नाम वेयणकसिणपाहुड (वेदनकृत्स्नप्राभृत) है । किन्तु इससे यह आवश्यक नहीं हो जाता कि समस्त वेयणकसिणपाहुड वेदनाखंड के ही अन्तर्गत होना चाहिये, क्योंकि यदि ऐसा माना जावे तब तो छह खंडों की आवश्यकता ही नहीं रहेगी और समस्त षट्खंड वेदनाखंड के ही अन्तर्गतमानना पड़ेंगे चूंकि जीवट्ठाणआदि सभी खंडों में इसी वेयणकसिणपाहुड के अंशों का ही तो संग्रह किया गया है जैसा कि प्रथम जिल्द की भूमिका में दिये गये मानचित्रों तथा संतपरूवणापृ. ७४ आदि के उल्लेखों से स्पष्ट है । यह खंड-कल्पना कम्मपयडिपाहुड या वेयणकसिणपाहुड के अवान्तर भेदों की अपेक्षा से की गई है कि किसी एक खंड को समूचेपाहुड का अधिकारी नहीं बनाया गया। स्वयं धवलाकार ने वेदनाखंड को महाकम्मपयडिपाहुड समझ लेने के विरुद्ध पाठकोंको सतर्क कर दिया है। वेदनाखंड के आदि में मंगल के निबद्ध अनिबद्ध का विवेक करते समय वे कहते हैं -
‘ण च वेयणाखंड महाकम्मपडिपाहुडं, अवयवस्स अवयवित्तविरोहादो'
अर्थात् वेदनाखंड महाकर्मप्रकृतिप्राभृत नहीं है, क्योंकि अवयव को अवयवी मान लेने में विरोध उत्पन्न होता है । यदि महाकर्मप्रकृतिप्राभृत के चौबीसों अनुयोगद्वार वेदनाखंड के अन्तर्गत होते तो धवलाकार उन सबके संग्रह को उसका एक अवयव क्यों मानते ? इससे बिल्कुल स्पष्ट है कि वेदनाखंड के अन्तर्गत उक्त चौबीसों अनुयोगद्वार नहीं हैं। २. क्या वर्गणा नाम का कोई पृथक् अनुयोगद्वार न होने से उसके नाम पर खंड संज्ञा नहीं हो सकती ?
कम्मपयंडिपाहुड के चौबीस अनुयोग द्वारों में वर्गणा नाम का कोई अनुयोगद्वार नहीं है, यह बिल्कुल सत्य है, किन्तु किसी उपभेद के नाम से वर्गणाखंड नाम पड़ना कोई
१ जैन सिद्धान्त भास्कर ६, १ पृ. ४२, अनेकान्त ३, १ पृ. ३.