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________________ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका मत्तिन मातवन्तिरलि जीर्ण जिनाश्रयकोय्यि क्रम बेत्तिरे मुन्निनन्तिरनितूर्गलोल नेरे माडिसुत्तमत्युत्तमपात्रदानदोदवं मेरेवुत्तिरे गङ्गवाडितो - म्बत्तरु सासिरं कोपणमादुदु गङ्गणदण्डनाथनि ॥३९॥ इससे कोपण तीर्थ की भारी महिमा का परिचय मिलता है । लगभग शक सं. १०८७ के लेख नं. १३७ (३४५) में हुल्ल सेनापति द्वारा कोपण महातीर्थ में जैन मुनिसंघ के निश्चिन्त अक्षय दान के लिये बहुत सुवर्ण व्यय से खरीदकर एक क्षेत्र की वृत्ति लगाई जाने का उल्लेख है । यथा - प्रियदिन्दं हुल्लसेनापति कोपणमहातीर्थदोळधात्रियुवा - द्विंयुमुल्लन्नं चतुविंशति-जिन-मुनि-संघक्के निश्चिन्तमाग क्षय दानं सल्व पाङ्गि बहु-कनम-मना-क्षेत्र-जिर्गत्तु सद्वत्तियनिन्तीलोक मेल्लम्पोगळे विडिसिदं पुण्यपुंजैकधामं ॥२७॥ इससे ज्ञात होता है कि यहां मुनि आचार्यों का अच्छा जुटाव रहा करता था और संभवत: कोई जैन शिक्षालय भी रहा होगा। लगभग १०५७ के लेख नं. १४४ (३८४) के एकपद्यम सेनापति एच द्वारा कोपण व अन्य तीर्थस्थानों में जिन मंदिर बनवाये जाने का उल्लेख है । यथा - माडिसिदंजितेन्द्रभवनङ्गलना कोपणादि तीर्थदळु रूढियिनेल्दो-वेत्तेसेव बेल्गोलदळु बहुचित्रभित्तियं । नोडिदरं मनङ्गोळि पुवेम्बिनमेच-चमूपनथि कै - गूड़े धारित्रिकोण्डु कोनेदाडे जसम्नलिदाडे लीलेयिं ॥ १३॥ निजाम हैद्राबाद स्टेट के रायचूर जिले में एक कोप्पल नाम का ग्राम है, यही प्राचीन कोपण सिद्ध होता है। वर्तमान में वहां एक दुर्ग तथा चहार दीवाली है जो चालुक्य कालीन कला के द्योतक समझे जाते हैं। इनके निर्माण में प्राचीन जैन मंदिरों के चित्रित पाषाण आदि का उपयोग दिखाई दे रहा है । एक जगह दीवाल में कोई बीस शिलालेखों के टुकड़े चुने हुए पाये जाते हैं । इस स्थान पर व उसके आसपास कोई दस बीस कोस की इर्दगिर्द में अशोक के काल से लगाकर इस तरफ के अनेक लेख व अन्य प्राचीन स्मारक पाये जाते हैं।
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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