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________________ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका १२३ लेख के अन्त में उनके संन्यास विधि से देहत्याग का उल्लेख इस प्रकार है :श्री मूलसंघद् देशिगगणद पुस्तकगच्छद शुभचन्द्रसिद्धान्तदेवर् गुड्डि सक वर्ष १०४२ नेय विकारि संवत्सरद फाल्गुण ब. ११ बृहबार दन्दु संन्यासन विधियि देमियक्कमुडिपिदलु । अर्थात् मूलसंघ, देशीगण, पुस्तकगच्छ के शुभचन्द्रदेव की शिष्या देमियक्कने शक १०४२ विकारिसंवत्सर फाल्गुन ब. ११ वृहस्पतिबार को संन्यासविधि से शरीरत्याग किया । उक्त परिचय पर से संभव तो यही जान पड़ता है कि धवला की प्रति का दान करने वाली धर्मिष्ठा साध्वी देमियक्क ये ही होंगीं, जिन्होंने शक १०४२ में समाधिमरण किया। तथा उनके भतीजे भुजबलि ' गंगपेर्माडिदेव जिनका धवला की प्रशस्ति में उल्लेख है उनके भ्राता बूचिराज के ही सुपुत्र हों तो आश्चर्य नहीं । उस व्रतोद्यापन के समय बूचिराज का स्वर्गवास हो चुका होगा, इससे उनके पुत्र का उल्लेख किया गया है। यदि यह अनुमान ठीक हो तो धवला की प्रति जो संभवत: मूडबिद्री की वर्तमान ताड़पत्रीय प्रति ही हो और जो शक ९५० के लगभग लिखाई गई थी, बूचिराज के स्वर्गवास के पश्चात् और देमियक्क के स्वर्गवास के पूर्व अर्थात् शक १०३७ और १०४२ के बीच शुभचन्द्रदेव के सुपुर्द की गई, ऐसा निष्कर्ष निकलता है । पर यह भी संभव है कि श्रीमति देमियक्क ने पुरानी प्रति की नवीन लिपि कराकर शुभचंद्र को प्रदान की और उसमें पूर्व प्रति के बीच-बीच के पद्य भी लेखक कापी कर लिये हों । प्रशस्ति के अन्तिम भाग में तीन कनाड़ी के पद्य हैं जिनमें से प्रथमपद्य 'श्री कुपणं' आदि में कोपण नाम के प्रसिद्ध पुरकी कीर्ति और शेष दो पद्यों में जिन्न नाम के किसी श्रावक के यश का वर्णन किया गया है। कोपण प्राचीन काल में जैनियों का एक बड़ा तीर्थस्थान रहा है। चामुंडराय पुराण के 'असिधारा व्रतदिदे' आदि एक पद्य से अवगत होता है कि तत्कालीन जैनी कोपण में सल्लेखना पूर्वक देहत्याग करना विशेष पुण्यप्रद मानते थे। श्रवणबेल्गोल के अनेक लेखों में इस पुण्य भूमिका उल्लेख पाया जाता है । लेख नं. ४७ (१२७) शक संवत् १०३७ का है। इसमें एक पद्य में कहा गया है कि सेनापति गंग ने असंख्य जीर्ण जैनमंदिरों का उद्धार कराकर तथा उत्तम पात्रों को उदार दान देकर गंगवाडिदेश को 'कोपण' तीर्थ बना दिया । यथा - १ भुजबलवीर होय्सल नरेशों की उपाधि पाई जाती है। देखो शिलालेख नं. १३८, १४३, ४९१,४९४, ४९७.
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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