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धवला के अन्त की प्रशस्ति
मुडबिद्री की ताड़पत्रीय प्रति के प्रसंग में हमारी दृष्टि स्वभावत: धवला की प्राप्त प्रतियों के अन्त में पायी जाने वाली प्रशस्ति पर जाती है । धवला के अन्त में धवलाकार वीरसेनाचार्य से सम्बंध रखने वाली वे नौ गाथाएं पाई जाती है जिनको हम प्रथम भाग में प्रकाशित कर चुके हैं। उन गाथाओं के पश्चात् निम्न लम्बी प्रशस्ति पाई जाती है, जिसके कनाड़ी अंश पूर्वोक्त प्रो.कुंदनगार व प्रो. उपाध्याय द्वारा बड़े परिश्रम से संशोधित किये गये हैं।
शब्दब्रह्मेति शाब्दैर्गणधरमुनिरित्येव राद्धान्तविद्धिः, साक्षा:सर्वज्ञ एवेत्यभिहितमतिभिः सूक्ष्मवस्तुप्रणीतः। यो दृष्टो विश्वविद्यानिधिरिति जगति प्राप्तभट्टारकाख्यः, स श्रीमान् वीरसेनो जयति परमतध्वान्त भित्तन्त्रकारः॥१॥
श्रीचरित्रसमृद्धिमिक्कविजयश्रीकर्मविच्छित्तिपूर्वकं ज्ञानावरणीयमूलनिर्नाशनं भूचक्रेशं बेसकेय्ये संदर्भमुनिवृन्दाधीश्वरकुन्दकुन्दाचार्यधृतधैर्य क्षगर्यतेयिने (१) नाचार्यरोळवर्यरु जितमदविनिर्गतमलर्चतुरंगुलचारणार्द्धिनिरतर्गणधर क्षरैरेकैर्त्तिगे (१)ब गुणगणधरर् यतिपतिगणधररेनिसिद कुंदकुन्दाचार्य । अवरन्वयदोळ् सिद्धान्तविदाकरणबेदिगळ् षट् तर्क प्रवणर्द्धिसंजुत्तपरिस्तुतरप्प गृहधृपिच्छाचार्यधैर्यपर.गर्दर्गाभीर्यगुणोदधिगळुचितशमदमयमतात्पर्यरने गृद्धपिच्छाचार्यर शिष्यर्बलाकपिच्छाचार्यगुणनन्दिपंडितनिजगुणनन्दिपंडितज्ञनंगळं मेचिसिमैगुणद पेसरेसेये विद्वद्वणतिलकर्सकलमुनीन्द्रशिष्यपदार्थदोळर्थशास्त्रदोळु जिनागमदोळु तंत्रदोळु महाचरितपुराणसंततिगळोळ् परमागमदोळ पेरर्समं दोरे सरि पाटिपासटि समानमेनळ् कृतविद्यरारेनुत्तिरे बुधकोटिसंदर्भवीतळ्दोळु । गुणनन्दिपण्डितशिष्यर्विहितविदर्गे सूनुर्वराशिष्यरोळ् तपश्चरणसिद्धान्तपारायणरेणिके गोळकर्पदिर्वर्तपोविच्छिन्नानंगरेबी महिमेयिनेसदेर्वाधियेंतंतुदारवच्छर्दिनकर किरणमे बेळगे देवेन्द्रसिद्धान्तरु । अन्तुनेगर्तेवेत्तवर शिष्यकदम्बकदोळ समस्तसिद्धान्तमहापयोनिधियेनिसि तडंबरेगं तपोबलाक्रान्तमनोजरागि मदवर्जितरागि पोगर्तेवेत्तराशंतं नेगर्द कीर्त्ति वसुनन्दिमुनीन्द्ररुदात्तवृत्तिपिनुदधिगे कलाधरं