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पखंडागम की शास्त्रीय भूमिका सूत्र से ३८ वें तक इन्द्रिय मार्गणा का कथन हैं और उससे आगे ४६ वें सूत्र तक कायका और फिर १०० वें सूत्र तक योग का कथन है । इस मार्गणा में योग के साथ पर्याप्ति अपर्याप्तियों का भी प्ररूपण किया गया है । तत्पश्चात् ११० वें सूत्रतक वेद, ११४ तक कषाय, १२२ तक धान, १३० तक संयम, १३५ तक दर्शन, १४० तक लेश्यां, १४३ तक भव्य १६१ तक सम्यक्त्व १७४ तक संज्ञी और फिर १७७ तक आहार मार्गणा का विवरण है।
__ प्रतियों में सूत्रों का क्रमांक दो कम पाया जाता है, क्योंकि, वहां प्रथम मंगलाचरण व तीसरे सूत्र 'तं जहा' की पृथक गणना नहीं की , किन्तु टीकाकार ने स्पष्टत: उनका सूत्ररूप से व्याख्यान किया है, अतएव हमने उन्हें सूत्र गिना है।।
टीकाकारने प्रथम मंगलाचरण सूत्र के व्याख्यान में इस ग्रंथ का मंगल, निमित्त, हेतु परिमाण, नाम और कर्ता का विस्तार से विवेचन करके दूसरे सूत्र के व्याख्यान में द्वादशांग का पूरा परिचय कराया है और उसमें द्वादशांग श्रुत से जीवाट्ठाण के भिन्न-भिन्न अधिकारों की उत्पत्ति बतलाई है । चौथे सूत्र के व्याख्यान में गति आदि चौदह मर्गणाओं के नामों की निरुक्ति और सार्थकता बतलाते हुए उनका सामान्य परिचय करा दिया गया है। उसके पश्चात् विषय का खूब विस्तार सहित न्यायशैली से विवेचन किया है । टीकाकार की शैली सर्वत्र प्रश्न उठाकर उनका समाधान करने की रही है । इस प्रकार प्रस्तुत ग्रंथ में कोई छह सौ शंकाएं उठाई गई हैं और उनके समाधान किये गये हैं। उदाहरणों, दृष्टान्तों, युक्तियों
और तर्कों द्वारा टीकाकार ने विषय को खूब ही छाना है और स्पष्ट किया है, किन्तु ये यब युक्ति और तर्क, जैसा हम ऊपर कह आये हैं, आगम की मर्यादा को लिए हुए हैं, और आगम ही यहां सर्वोपरि प्रमाण है । टीकाकार द्वारा व्याख्यात विषय की गंभीरता, सूक्ष्मता और तुलनात्मक विवेचना हम अगले खंड में करेंगे जिसमें सत्प्ररूपणा का आलाप प्रकरण भी पूरा हो जावेगा । तब तक पाठक स्वयं सूत्रकार और टीकाकार के शब्दों का स्वाध्याय और मनन करने की कृपा करें।
ग्रंथ की भाषा प्रस्तुत ग्रंथ रचना की दृष्टि से तीन भागों में बंटा हुआ है । प्रथम पुष्पदन्ताचार्य के सूत्र, दूसरे वीरसेनाचार्य की टीका और तीसरे टीका में स्थान-स्थान पर उद्धृत किये गये प्राचीन गद्य और पद्य । सूत्रों की भाषा आदि से अन्त तक प्राकृत है और इन सूत्रों की संख्या है १७७ । वीरसेनाचार्य की टीका का लगभग तृतीय भाग प्राकृत में और शेष भाग संस्कृत में