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________________ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका खंड का संक्षेप से विधान किया और इस प्रकार छहों खंडों की बहत्तर हजार ग्रंथप्रमाण धवला टीका रची गई । (देखो ऊपर पृ. ३८) धवला में वर्गणाखंड की समाप्ति तथा उपर्युक्त भूतबलिकृत महाबंध की सूचना के पश्चात् निबंधन, प्रक्रम, उपक्रम, उदय, मोक्ष, संक्रम, लेश्या, लेश्याकर्म, लेश्यापरिणाम, सातासात, दीर्घ-हस्व, भवधारणीय, पुद्गलात्म, निधत-अनिधत्त, निकाचित-अनिकाचित, कर्मस्थिति, पश्चिमस्कंध और अल्पबहुत्व, इन अठारह अनुयोगद्वारों का कथन किया गया है और इस समस्त भाग को चूलिका कहा है । यथा - एत्तो उवरिम-गंथो चूलिया णाम। इन्द्रनन्दि के उपर्युक्त कथनानुसार यही चूलिका संक्षेप से छठवां खंड ठहरता है, और इसका नाम सत्कर्म प्रतीत होता है, तथा इसके सहित धवला षटुंडागम ७२ हजार श्लोक प्रमाण सिद्ध होता है । विवुध श्रीधर के मतानुसार वीरसेनकृत ७२ हजार प्रमाण समस्त धवला टीका का नाम सत्कर्म है । यथा - अत्रान्तरे एलाचार्यभट्टारकपार्श्वे सिद्धान्तद्वयं वीरसेननामा मुनि: पठित्वाऽपराणयपि अष्टादशा धिकाराणि प्राप्त पंच-खंडे षट्-खंडं संकल्प्य संस्कृतप्राकृतभाषया सत्कर्मनामटीका द्वासप्ततिसहस्रप्रमितां धवलनामांकितां लिखाप्य विशंतिसहस्रकर्मपाभृतं विचार्य वीरसेनो मुनि: स्वर्गयास्यति । (विबुध श्रीधर. श्रुतावतार मा ग्रं.मा. २१, पृ.३१८) दुर्भाग्यत: महाबंध (महाधवल) हमें उपलब्ध नहीं है, इस कारण महाबंध और सत्कर्म नामों की इस उलझन को सुलझाना कठिन प्रतीत होता है। किन्तु मूडविद्री में सुरक्षित महाधवल का जो थोड़ा सा परिचय उपलब्ध हुआ है उससे ज्ञात होता है कि वह ग्रंथ भी सत्कर्म नाम से है और उस पर एक पंचिकारूप विवरण है जिसके आदि में ही कहा गया है - 'वोच्छामि संतकम्मे पंचियरूवेण विवरणं सुमहत्थं । ..... चोव्वीसमणियोगद्दारेसु तत्थ कदिवेदणा त्ति जाणि अणियोगद्दाराणि वेदणाखंडम्हि पुणो फास (कम्म-पयडिबंधणाणि) चत्तारि अणियोगद्दारेसु तत्थ बंध-बंधणिजणामणियोगेहि सह वग्गणाखंडम्हि, पुणो बंधविधाणणामणियोगो खुद्दाबंधम्हि सप्पवंचेण परूविदाणि । तो वि तस्सइगंभीरत्तादो अत्थ-विसम पदाणमत्थे थोरुद्वणेय (?) पंचियसरूवेण भणिस्सामो । (वीरवाणी सि.भ.रिपोर्ट, १९३५) १. यहाँ पाठ में कुछ त्रुटि जान पड़ती है, क्योंकि, धवला के अनुसार खुदाबंध से बंधक का वर्णन है और बंधविधान महाबंध का विषय है।
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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