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________________ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका श्लोक प्रमाण रचना की। धवला में जहां वर्गणाखंड समाप्त हुआ है वहां सूचना की गई है कि - 'जं तं बंधविहाणं तं चउन्विहं, पयडिबंधो द्विदिबंधो अणुभागबंधो पदेसबंधो चेदि। एदेसिं चदुण्हं बंधाणं विहाणं भूदबलि-भडारएण महाबंधे सप्पवंचेण लिहिदं ति अम्हेहि एत्थ ण लिहिदं । तदो सयले महाबंधे एत्थ परूविदे बंधविहाणं समप्पदि' (धवला क. १२५९-१२६०) अर्थात् बंधविचार चार प्रकार का है, प्रकृतिबंध, स्थितिबंध, अनुभागबंध और प्रदेशबंध। इन चारों प्रकार के बंधों का विधान भूतबलि भट्टारक ने महाबंध में सविस्तररूप से लिखा है, इस कारण हमने (वीरसेनाचार्य ने) उसे यहां नहीं लिखा । इस प्रकार से समस्त महाबंध के यहां प्ररूपण हो जाने पर बंधविधान समाप्त होता है। ऐसा ही एक उल्लेख जयधवला में भी पाया जाता है जहां कहा गया है कि प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेश बंध का वर्णन विस्तार से महाबंध में प्ररूपित है और उसे वहां से देख लेना चाहिये, क्योंकि, जो बात प्रकाशित हो चुकी है उसे पुन: प्रकाशित करने में कोई फल नहीं। यथा - सो पुण पयडिट्ठिदिअणुभागपदेसबंधो बहुसो परूविदो । (चूर्णिसूत्र) सो उण गाहए पुव्वद्वम्मि णिलीणो पडि-ट्ठिदि-अणुभाग-पदेस-विसओ बंधो बहुसो गंथंतरेसु परूविदो त्ति तत्थेव वित्थरो दट्ठव्वो, ण एत्थ पुणो परूविज्जदे, पयासियपयासणे फलविसेसाणुवलंभादो । तदो महाबंधा - णुसारेणेत्थ पडि-ट्ठिदि-अणुभाग-पदेसबंधेसु विहासियसमत्तेसु तदो बंधो समत्तो होई । जयध.अ.५४८ इससे इन्द्रनन्दि के कथन की पुष्टि होती है कि छठवां खंड स्वयं भूतबलि आचार्य द्वारा रचित सविस्तर पुस्तकारूढ़ है। सत्कर्म-पाहुड किंतु इन्दनन्दिने श्रुतावतार में आगे चलकर कहा है कि वीरसेनाचार्य ने एलाचार्य से सिद्धान्त सीखने के अनन्तर निबन्धनादि अठारह अधिकारों द्वारा सत्कर्म नामक छठवें १. तेन तत: परिपठितां भूतबलि: सत्प्ररूपणां श्रुत्वा । षट्खंडागमरचनाभिप्रायं पुष्पदन्तगुरोः ॥ १३७॥ विज्ञायाल्पायुष्यानल्पमतीन्मानवान् प्रतीत्य तत: । द्रव्यप्ररूपणाद्यधिकार: खंडपंचकस्यान्वक् ॥१३८॥ सूत्राणि षट्हस्रग्रंथान्यथ पूर्वसूत्रसहितानि । प्रविरच्य महाबंधायं तत: षष्ठकं खंडम् ॥ १३९ ॥ विंशत्सहस्रसूत्रग्रंथं व्यरचयदसौ महात्मा । इन्द्र, श्रुतावतार,
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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