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________________ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका ___ वेदना में १ निक्षेप, २ नय, ३ नाम, ४ द्रव्य, ५ क्षेत्र, ६ काल, ७ भाव, ८ प्रत्यय, स्वामित्व, १० वेदना, ११ गति, १२ अनन्तर, १३ सन्निकर्ष, १४ परिमाण, १५ भागा-भागानुगम और १६ अल्पबहुत्वानुगम, इन सोलह अधिकारों के द्वारा वेदना का वर्णन है। इस खंड का परिमाण सोलह हजार पद बतलाया गया है । यह समस्त खंड अ. प्रति के ६६७ वें पत्र से प्रारम्भ होकर ११०६ वें पत्रपर समाप्त हुआ है, जहां कहा गया है - एवं वेयण-अप्पाबहुगाणिओगद्दारे समत्ते वेयाणाखंडं समत्ता (खंडो समत्तो)। ५ वर्गणा - पांचवे खंड का नाम वर्गणा है । इसी खंड में बंधनीय के अन्तर्गत वर्गणा अधिकार के अतिरिक्त स्पर्श, कर्म, प्रकृति और बन्धन का पहल भेद बंध, इन अनुयोगद्वारों का भी अन्तर्भाव कर लिया गया है। स्पर्श में निक्षेप, नय आदि सोलह अधिकारों द्वारा तेरह प्रकार के स्पर्शो का वर्णन करके प्रकृत में कर्म-स्पर्श से प्रयोजन बतलाया है। कर्म में पूर्वोक्त सोलह अधिकारों द्वारा १ नाम, २ स्थापना, ३ द्रव्य, ४ प्रयोग, ५ समवधान ६ अधः, ७ ईर्यापथ, ८ तप, ९ क्रिया और १० भाव, इन दश प्रकार के कर्मों का वर्णन है। प्रकृति में शील और स्वभाव को प्रकृति के पर्यायवाची बताकर उसके नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव, इन चार भेंदों में से कर्म-द्रव्य-प्रकृति का पूर्वोक्त १६ अधिकारों द्वारा विस्तार से वर्णन किया गया है। इस खंड का प्रधान अधिकार बंधनीय है. जिसमें २३ प्रकार की वर्णणाओं का वर्णन और उनमें से कर्मबन्ध के योग्य वर्गणाओं का विस्तार से कथन किया है । यह खंड अ. प्रति के ११०६ वें पत्र से प्रारम्भ होकर १३३२ वें पत्र पर समाप्त हुआ है और वहां कहा है - एवं विस्ससोवचय-परूवणाए समत्ताए बाहिरिय-वग्गणा समत्ता होदि । ६. महाबंध इन्द्रनन्दिने श्रुतावतार में कहा है कि भूतबलिने पांच खंडों के पुष्पदन्त विरचित सूत्रों - सहित छह हजार सूत्र रचने के पश्चात् महाबंध नामके छठवें खंड की तीस हजार
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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