________________
पखंडागम की शास्त्रीय भूमिका
८३ परिमाण धवलाकार ने अठारह हजार पद कहा है (पृ. ६०) । पूर्वोक्त आठ अनुयोग द्वारों और नौ चूलिकाओं में गुणस्थानों और मार्गणाओं का आश्रय लेकर यहां विस्तार से वर्णन किया गया है। २. खुद्दाबंध
दूसरा खंड खुद्दाबंध (क्षुल्लकबंध) है । इसके ग्यारह अधिकार हैं, १ स्वामित्व, २ काल, ३ अन्तर, ४ भंगविचय, ५ द्रव्यप्रमाणानुगम, ६ क्षेत्रानुगम, ७ स्पर्शनानुगम, ८ नानाजीव-काल, ९ नाना-जीव-अन्तर, १० भागाभागानुगम और ११ अल्पबहुत्वानुगम । इस खंड में इन ग्यारह प्ररूपणाओं द्वारा कर्मबन्ध करने वाले जीव का कर्मबन्ध के भेदों सहित वर्णन किया गया है।
यह खंड अ. प्रति के ४७५ पत्र से प्रारम्भ होकर ५७६ पत्रपर समाप्त हुआ है। ३. बंधस्वामित्वविचय
तीसरे खंड का नाम बंधस्वामित्वविचय है । कितनी प्रकृतियों का किस जीव के कहां तक बंध होता है, किसके नहीं होता है, कितनी प्रकृतियों की किस गुणस्थान में व्यच्छित्ति होती है, स्वोदय बंधरूप प्रकृतियां कितनी हैं और परोदय बंधरूप कितनी हैं, इत्यादि कर्मबंधसंबन्धी विषयों का बंधक जीव की अपेक्षा से इस खंड में वर्णन है । ४. वेदना -
यह खंड अ. प्रति के ५७६ वें पत्र से प्रारम्भ होकर ६६७ वें पत्र पर समाप्त हुआ है। चौथे खंड का नाम वेदना है । इसके आदि में पुन: मंगलाचरण किया गया है । इसी खंड के अन्तर्गत कृति और वेदना अनुयोगद्वार हैं। किंतु वेदना के कथन की प्रधानता और अधिक विस्तार के कारण इस खंड का नाम वेदना रक्खा गया है ।
कृति में औदारिकादि पांच शरीरों की संघातन और परिशातनरूप कृति का तथा भव के प्रथम और अप्रथम समय में स्थित जीवों के कृति, नोकृति और अवक्तव्यरूप संख्याओं का वर्णन है । १ नाम, २ स्थापना, ३ द्रव्य, ४ गणना, ५ ग्रंथ, ६ करण और ७ भाव, ये कृति के सात प्रकार हैं, जिनमें से प्रकृत में गणनाकृति मुख्य बतलाई गई है।
१ कदि-पास-कम्म-पयाडे-अणियोगद्दाराणि वि एत्थ परूविदाणि, तेसिं खंडगंथसण्णमकाऊण तिण्णि
चेव खंडाणि त्ति किमढें उच्चदे १ ण, तेसिं पहाणत्ताभावादो । तं पि कुदो णव्वदे ? संखेवेण परुवणादो।