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________________ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका साहित्यिक इतिहास के सम्बंध में बहुत सी नई बातें ज्ञात होगी जिनसे अनेक साहित्यिक ग्रंथियां सुलझ सकेंगी। षट्खंडागम का परिचय (पु. १) ग्रंथ नाम - पुष्पदन्त और भूतबलि द्वारा जो ग्रंथ रचा गया उसका नाम क्या था ? स्वयं सूत्रों में तो ग्रंथ का कोई नाम हमारे देखने में नहीं आया, किन्तु धवलाकार ने ग्रंथ की उत्थानिका में ग्रंथ के मंगल, निमित्त, हेतु, परिमाण, नाम और कर्ता, इन छह ज्ञातव्य बातों का परिचय कराया है । वहां इसे 'खंडसिद्धान्त' कहा है और इसके खंडों की संख्या छह बतलाई है ।। इस प्रकार धवलाकार ने इस ग्रंथ का नाम 'षट्खंड सिद्धान्त' प्रकट किया है । उन्होंने यह भी कहा है कि सिद्धान्त और आगम एकार्थवाची हैं । धवलाकार के पश्चात् इन ग्रंथों की प्रसिद्धि आगम परमागम व षट्खंडागम नाम से ही विशेषत: हुई । अपभ्रंश महापुराण के कर्ता पुष्पदन्तने धवल और जयधवल को आगम सिद्धान्त ३, गोम्मटसार के टीकाकार ने " परमागम तथा श्रुतावतार के कर्ता इन्द्रनन्दिने षट्खंडागम' कहा है, और इन ग्रंथों को आगम कहने की बड़ी भारी सार्थकता भी है । सिद्धान्त और आगम यद्यपि साधारणत: पर्यायवाची गिने जाते हैं, किन्तु निरुक्ति और सूक्ष्मार्थ की दृष्टि से उनमें भेद है । कोई भी निश्चित या सिद्ध मत सिद्धान्त कहा जा सकता है, किन्तु आगम वही सिद्धान्त कहलाता है १ तदो एयं खंडसिद्धंतं पडुच्च भूदबलि-पुप्फयंताइरिया वि कत्तारो उच्चंति । (पृ. ७१) इदं पुण जीवट्टाणं खंडसिद्धंतं पहुच्च पुव्वाणुपुवीए द्विदं छण्हं खंडाणं पढमखंडं जीवट्ठाणमिदि। (पृ.७४) २ आगमो सिद्धंतो पवयणमिदि एयट्ठो । (पृ. २०.) आगम: सिद्धान्त: । (पृ.२९.) कृतान्तागम-सिद्धान्त-ग्रंथा: शास्त्रमत: परम ॥ (धनंजय-नाममाला ४) ३. ण उ बुज्झिउ आयमु सद्दधामु । सिद्धंतु धवलु जयधवलु णाम ॥ (महापु. १, ९, ८.) ४. एवं विंशतिसंख्या गुणस्थानादय: प्ररूपणा: भगवदर्हगणधरशिष्य-प्रशिष्यादिगुरुपर्वागतया परिपाट्या अनुक्रमेण भणिता: परमागमे पूर्वाचायै: प्रतिपादिता: (गो.जी.टी. २१.) परमागमे निगोदजीवानां द्वैविध्यस्य सुप्रसिद्धत्वात्। (गो.जी.टी. ४४२) ५. षट्खंडागम रचनाभप्रायं पुष्पदन्तगुरोः ॥ १३७॥ षखंडागमरचनां प्रविधाय भूतवल्यार्य: ॥ १३८ ॥ षट्खंडागमपुस्तकमहो मया चिंतितं-कार्यम् ॥ १४६॥ एवं षट्खंडागम सूत्रोत्पतिं प्ररूप्य पुनरधुना ॥ १४९ ॥ षखंडागमगत-खंड-पंचकस्य पुनः ॥ १६८॥
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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