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________________ चुनकर क्यों न खाये जायें । इन छहों पथिकों के विचार, वाणी तथा कर्म क्रमशः छहों लेश्याओं के उदाहरण हैं। २९९. चंडो ण मुंचइ वेरं, भंडणसीलो य धरमदयरहिओ। दुट्ठो ण य एदि वसं, लक्खणमेयं तु किण्हस्स ।।७।। स्वभाव की प्रचण्डता, वैर की मजबूत गाँठ, झगड़ालू वृत्ति, धर्म और दया से शून्यता, दुष्टता, समझाने से भी नहीं मानना—ये कृष्णलेश्या के लक्षण हैं। ३००. मंदो बुद्धिविहीणो, णिविणाणी य विसयलोलो य। लक्खणमेयं भणियं, समासदो णीललेस्सस्स ।।८।। मन्दता, बुद्धिहीनता, अज्ञान और विषयलोलुपता—ये संक्षेप में नीललेश्या के लक्षण हैं। ३०१. रूसइ णिदइ अन्ने, दूसइ बहुसो य सोयभयबहुलो। ण गणइ कज्जाकज्जं, लक्खणमेयं तु काउस्स ।।९।। जल्दी रुष्ट हो जाना, दूसरों की निन्दा करना, दोष लगाना, अति शोकाकुल होना, अत्यन्त भयभीत होना—ये कापोतलेश्या के लक्षण हैं। ३०२. जाणइ कज्जाकज्जं, सेयमसेयं च सव्वसमपासी। दयदाणरदो य मिदू, लक्खणमेयं तु तेउस्स ।।१०।। कार्य-अकार्य का ज्ञान, श्रेय-अश्रेय का विवेक, सबके प्रति समभाव, दया-दान में प्रवृत्ति—ये तेजोलेश्या के लक्षण हैं। ३०३. चागी भद्दो चोक्खो, अज्जवकम्मो य खमदि बहुगं पि। साहुगुरुपूजणरदो, लक्खणमेयं तु पम्मस्स ॥११॥ त्यागशीलता, परिणामों में भद्रता, व्यवहार में प्रामाणिकता, कार्य में ऋजुता, अपराधियों के प्रति क्षमाशीलता, साधु-गुरुजनों की पूजा-सेवा में तत्परता ये पद्मलेश्या के लक्षण हैं। ३०४. ण य कुणइ पक्खवायं, ण वि य णिदाणं समो य सव्वेसिं। णत्थि य रागद्दोसा, णेहो वि य सुक्कलेस्सस्स ॥१२॥ लेश्यासूत्र/६३
SR No.002278
Book TitleJinsutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwe Nakoda Parshwanath Tirth
Publication Year2001
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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