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________________ २४. लेश्यासूत्र २९३. जोगपउत्ती लेस्सा, कसायउदयाणुरंजिया होई ॥१॥ कषाय के उदय से अनुरंजित मन-वचन-काय की योग-प्रवृत्ति को लेश्या कहते हैं। २९४. किण्हा णीला काऊ तेऊ पम्मा य सुक्कलेस्सा य। लेस्साण णिद्देसा, छच्चेव हवंति णियमेण ॥२॥ लेश्याएँ छह प्रकार की हैं—कृष्णलेश्या, नीललेश्या, कापोतलेश्या, तेजोलेश्या (पीतलेश्या), पद्मलेश्या और शुक्ललेश्या। २९५. किण्हा नीला काऊ, तिण्णि वि एयाओ अहम्मलेसाओ। एयाहि तिहि वि जीवो, दुग्गइं उववज्जई बहुसो ॥३॥ कृष्ण, नील और कापोत ये तीनों अधर्म या अशुभ लेश्याएँ हैं। इनके कारण जीव विविध दुर्गतियों में उत्पन्न होता है। २९६. तेऊ पम्हा सुक्का, तिण्णि वि एयाओ धम्मलेसाओ। एयाहि तिहि वि जीवो, सुग्गइं उववज्जई बहुसो ॥४॥ पीत (तेज), पद्म और शुक्ल ये तीनों धर्म या शुभ लेश्याएँ हैं । इनके कारण जीव विविध सुगतियों में उत्पन्न होता है । २९७-८. पहिया जे छ प्पुरिसा, परिभट्ठारण्णमझदेसम्हि। फलभरियरुक्खमेगं, पेखित्ता ते विचिंतंति ।।५।। णिम्मूलखंधसाहु-वसाहं छित्तुं चिणित्तु पडिदाई। खाउं फलाई इदि जंमणेण वयणं हवे कम्मं ॥६॥ छह पथिक थे। जगल के बीच जाने पर वे भटक गये। फलों से लदे वृक्ष को देखकर वे विचार करने लगे। एक ने सोचा कि पेड़ को जड़-मूल से काटकर इसके फल खाये जायें। दूसरे ने सोचा कि केवल स्कन्ध ही काटा जाये। तीसरे ने विचार किया कि शाखा ही तोड़ना ठीक रहेगा। चौथा सोचने लगा कि उपशाखा (छोटी डाल) ही तोड़ ली जाये । पाँचवाँ चाहता था कि फल ही तोड़े जायें। छठे ने सोचा कि वृक्ष से टपककर नीचे गिरे हुए पके फल ही जिनसूत्र/६२
SR No.002278
Book TitleJinsutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwe Nakoda Parshwanath Tirth
Publication Year2001
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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