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________________ ३४ - तीर्थंकर पार्श्वनाथ तत्वत: इसमें भिन्न - पथता नहीं, व्याख्या-स्पष्टता ही अधिक है। मूलाचार ७.५३५-३९ में भी परोक्षत: यही कहा गया है। (२) इसी प्रकार, वेश (सचेल-अचेल) सम्बन्धी द्विविधता भी केवल व्यावहारिक है। यहाँ भी वैज्ञानिक आधार पर ही धर्म के साधनों के अवलम्बन करने की बात है। निश्चय दृष्टि से तो धर्म के मुख्य साधक ज्ञान, दर्शन और चरित्र ही हैं। इस प्रकार वेश गौण है। इस पर बल देने की अनिवार्यता नहीं है। भरत चक्रवर्ती आदि बिना वेश के ही केवली हये हैं। यहाँ “निश्चय” शब्द का उपयोग हुआ है जो महत्वपूर्ण है। जो केवल सचेल मुक्ति ही मानते हैं। वे सही नहीं हैं। सचेल-अचेल सम्बन्धी मान्यताओं का यह प्रथम उल्लेख लगता है। ___इन दो परम्परागत विचार-भेदों के उपदेशों के अतिरिक्त अन्य १० प्रश्नोत्तर बिन्दु पार्श्व और महावीर - दोनों ने ही स्वीकृत किये हैं। इस प्रकार इन दोनों परम्पराओं में लगभंग १७% मत भिन्नता प्रकट होती है। इन १० विन्दुओं में (१) मनोनियन्त्रण के माध्यम से इंद्रिय-कषायविजय (२) . राग-द्वेष-स्नेह रूपी पाशों से मुक्ति (३) भव-तृष्णा रूपी लता को उत्तम चरित्र रूपी अग्नि से नष्ट करना (४) कषाय रूपी अग्नि को तपोजल से शमित करना (५) मन रूपी दुर्दान्त अश्व को श्रुत एवं संयम से वश में करना (६) सु-प्रवचन के मार्ग पर चलना (७) धर्म-द्वीप से प्रकाशित होना (८) संसार समुद्र को मोक्षैषणा द्वारा पार करना (९) अज्ञान अंधकार को अर्हत् वचन के प्रकाश से नष्ट करना तथा मुक्त स्थान प्राप्त करना। ये विन्दु उपमाओं के माध्यम से मनोवैज्ञानिक आधार पर प्रभावी रूप से व्यक्त किये गये हैं। सूत्र तांग : गौतम-पेंढालपुत्र उदक संवाद : श्रावकों का धर्म वर्तमान बिहार प्रदेश के नालंदा नगर के मनोरम उद्यान में गौतम गणधर और पापित्यीय पेंढालपुत्र उदक का हिंसा और कर्म बंध विषयक मनोरंजक संवाद आया है। गौतम ने उदक को बताया कि साधु या श्रमण तो सर्व हिंसाविरति का उपदेश देता है, पर गृहस्थ अपनी सीमाओं के कारण
SR No.002274
Book TitleTirthankar Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharti
Publication Year1999
Total Pages418
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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