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________________ ३३ पार्थापत्य कथानकों के आधार पर भ. पार्श्वनाथ के उपदेश अर्थ में किया लगता है। इससे प्रकट होता है कि भ. पार्श्व के विचारों पर उपनिषदीय “जीवात्मवाद" का प्रभाव पड़ा है। अन्य ग्रन्थों में यत्र-तत्र जो भी पार्श्व के उपदेश या उनका सन्दर्भ पाया जाता है, वह ऋषिभाषित के सूत्रों का विस्तार या किंचित् परिवर्धन (सचेल-अचेल मुक्ति आदि) का रूप उत्तराध्ययन : केशी-गौतम संवाद : विज्ञान और प्रज्ञा का उपयोग आवश्यक चटर्जी उत्तराध्ययन को पांचवी सदी ईसा पूर्व का ग्रंथ मानते हैं ।१५ इसके तेइसवें अध्ययन में पार्वापत्य केशी एवं महावीर के गणधर गौतम का एक ज्ञानवर्धक संवाद है। राजप्रश्नीय के केशी-प्रदेशी के संवाद में यही पार्वापत्य केशी आचार्य हैं। इस संवाद के अनुसार, एक बार कुमार श्रमण केशी और गणधर गौतम एक ही समय श्रावस्ती (उ.प्र.) के अलग-अलग दो उद्यानों में ठहरे थे। दोनों के ही मन में एक-दूसरे से मिलने की एवं एक दूसरे की परम्पराओं को जानने की जिज्ञासा हुयी। गौतम संघ सहित केशी से मिलने गये। केशी ने उनसे बारह प्रश्नों पर जिज्ञासा की। इनमें दो प्रश्न महत्वपूर्ण हैं। एक ही लक्ष्य होते हुये चातुर्याम एवं पंचयाम तथा वेश की द्विविधता के उपदेश का क्या कारण है? गौतम ने इस विषय में बहुत ही वैज्ञानिक दृष्टि का आश्रय लिया और बताया कि .. (१) उपदेश शिष्यों की योग्यता एवं लौकिक दशाओं के आधार पर दिये जाते हैं। भ. पार्श्व के समय साधु और श्रावक ऋजु और प्राज्ञ होते थे और भ. महावीर के समय ये वक्र और जड़ होते हैं। अत: दोनों के उपदेशों में धर्म और तत्व का उपदेश प्रज्ञा और बुद्धि का प्रयोग कर देना चाहिये। महावीर ने वर्तमान दशा को देखकर ही विभज्यवाद के आधार पर ब्रह्मचर्य व्रत जोड़ कर पंचयाम का उपदेश दिया। पार्श्व के युग में यह अपरिग्रह के अन्तर्गत समाहित होता था। ऐसा प्रतीत होता है कि भ. पार्श्व के युग में विवाह-प्रथा का प्रचलन किंचित् शिथिल रहा होगा। महावीर ने उसे पांचवें याम के आधार पर सुदृढ़ बनाया और सामाजिकता का सम्वर्द्धन किया।
SR No.002274
Book TitleTirthankar Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharti
Publication Year1999
Total Pages418
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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