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तीर्थंकर पार्श्वनाथ
भगवान् पार्श्वनाथ के जन्मस्थान वाराणसी के सम्बन्ध में सभी प्राकृत ग्रन्थ और दोनों परम्पराएं एक मत हैं। भगवान् पार्श्व की जन्म तिथि तिलोयपण्णत्ति में पौष कृष्णा एकादशी निर्दिष्ट है, जबकि कल्पसूत्र में पार्श्व का जन्म पौष कृष्णा दशमी की मध्यरात्रि दिया हुआ है (सूत्र १५१)। एक तिथि का यह भेद परवर्ती ग्रन्थों में भी बना हुआ है। यद्यपि विशाखा नक्षत्र के सम्बन्ध में सभी एक मत हैं। ____ भ. पार्श्वनाथ की जन्मतिथि तो प्राकृत के इन प्राचीन ग्रन्थों में अंकित है, किन्तु जन्मसंवत् या वर्ष क्या था, इसका उल्लेख यहाँ नहीं है। प्रकारान्तर से इसके कुछ संकेत दिये गये हैं। तिलोयपण्णत्ति में कहा.गया है कि भ. पार्श्वनाथ के जन्म और भ. महावीर के जन्म में २७८ वर्ष का अन्तर है। जब हम दोनों तीर्थंकरों की आयु इसमें से घटाते हैं तो उनके निर्वाणवर्ष का अन्तर इस प्रकार आता है -
भ. पार्श्वनाथ
भ. महावीर ई.पू. ८७७ वर्ष में जन्म ई.पू. ५९९ में जन्म
(२७८ वर्ष का अन्तर) - ७२ वर्ष की आयु - १०० वर्ष की आयु
, ई.पू. ७७७ वर्ष में निर्वाण ई.पू. ५२७ में निर्वाण
७७७ - ५२७ = २५० वर्ष का अन्तर ।
इस २५० वर्ष के अन्तर को श्वेताम्बर परम्परा के १७वी सदी के एक ग्रन्थ “उपकेशगच्छचरितावली” में भ. पार्श्वनाथ के चार पट्टधर आचार्यों का काल देकर भी समझाया गया है। प्रथम पट्टधर शुभदत्त भ. पार्श्वनाथ के निर्वाण के बाद २४ वर्ष तक रहे, द्वितीय पट्टधर हरिदत्त ७० वर्ष तक रहे, तृतीय पट्टधर समुद्रसूरि ७२ वर्ष तक रहे और अंतिम चतुर्थ पट्टधर केशीश्रमण ८४ वर्ष तक रहे। अर्थात् भगवान महावीर के जन्म
और निर्वाण काल में भ. पार्श्वनाथ के पट्टधर केशीश्रमण विद्यमान थे२२ । दिगम्बर परम्परा के प्राकृत ग्रन्थों में पार्श्व के पट्टधरों की परम्परा का