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प्राकृत साहित्य में भ. पार्श्वनाथ चरित विवरण दृष्टिगत नहीं हुआ। प्रोफेसर सागरमल जैन “उपकेशगच्छचरितावली" के विवरण को प्रामाणिक नहीं मानते२३ । आधुनिक देशी-विदेशी विद्वानों ने भी विभिन्न साक्ष्यों के आधार पर भ. पार्श्वनाथ की ऐतिहासिकता स्वीकार की है। वे भी भ. महावीर के २५० वर्ष पूर्व भ.पार्श्वनाथ का अस्तित्व स्वीकार करते हैं। अब यह अन्तर २५० वर्ष भ. महावीर के निवार्ण के वर्ष के पूर्व था या जन्म के वर्ष के पूर्व, साक्ष्यों के अभाव में इस सम्बन्ध में अभी कुछ कहना ठीक नहीं।
भगवान् पार्श्वनाथ के सम्बन्ध में जो प्राचीन प्राकृत साहित्य उपलब्ध है उसमें उनके समवसरण के बाद धर्मोपदेश का विवरण प्राप्त नहीं है। श्वेताम्बर परम्परा के उत्तराध्ययनसूत्र, सूत्रकृतांगसूत्र, भगवतीसूत्र एवं रामषसेनिय आदि प्राकृत ग्रन्थों में कतिपय पार्श्व-परम्परा के मुनियों और उनकी विचार धारा के विवरण अवश्य उपलब्ध हैं, जो पार्श्वनाथ के धर्म-दर्शन का संकेत करते हैं। "दिसीभासियं” नामक प्राकृत ग्रन्थ में 'पार्श्व' नामक अध्याय है, जिसमें लोक-स्वरूप, जीव और पुद्गल की गति, कर्म एवं उसके फल-विपाक, गतियों का गमनचक्र आदि का विवेचन है, जिसका उपदेश भ. पार्श्व ने दिया था। यहाँ चातुर्याम धर्म, निर्जीव-भोजन और मोक्षमार्ग की भी चर्चा है। इस सबका विवरण डा. सागरमल जैन ने अपनी पुस्तक में दिया है२५ । विद्वानों ने भ. पार्श्व और महावीर के धर्म के विशेष अन्तर को सामायिक और छेदोपस्थापना चारित्र के रूप में स्पष्ट किया है२६ । भ. पार्श्वनाथ के मूल उपदेशों की समीक्षा प्राचीन सन्दर्भो के आधार पर की जानी आवश्यक है ।
संदर्भ १. णमि-णेमी-पास-वड्ढमाण य।। - ति.पं., गाथा ५१९-५२०. २. ति.प., गा. ५३१. ३. वही, गा. ५५५. ४. वही, गा. ५५७.