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तीर्थंकर पार्श्वनाथ चित्ते बहुलचउत्थी-विसाह-रिक्खम्मि पासणाहस्स।
सक्कपुरे पुण्वण्हे, केवलणाणं समुप्पण्णं ।।७०८।। . केवल ज्ञान उत्पन्न होने पर कुबेर के द्वारा समवसरण की रचना की गयी, जिसका क्षेत्रफल बहुत विशाल था (गा. ७१७ से ८९०)। १४. भ. पार्श्वनाथ का केवलिकाल का प्रमाण ६९ वर्ष एवं ८ माह था, भ. महावीर का केवली काल ३० वर्ष का था- . .
अड-मास-समहियाणं, ऊणत्तरि वस्सराणि पसजिणे। . .
वीरम्मि तीसवासा, केवलिकालस्स संखं त्ति।।९६९ ।। . १५. भ. पार्श्वनाथ के यक्ष का नाम मातंग और यक्षिणी का नाम पद्मा
था। (गा. ९४३-९४८)। १६. भ. पार्श्वनाथ के दस गणधर थे, जिनमें प्रथम गणधर का नाम . स्वयम्भू था (गा. ९७२-९७५)। .. . १७. पार्श्व जिनेन्द्र के समय में १६००० ऋषि थे। इन के सात गण थे, ___ जिनमें ३५० पूर्वधर, १०,९०० शिक्षक, १४०० अवधिज्ञानी मुनि, १०००
केवल ज्ञानी, १००० विक्रिया ऋद्धि के धारक, ७५० विपुलगति अवधिज्ञानी
और ६०० वादी मुनि थे (गा. ११६९-११७०)। . १८. भ. पार्श्वनाथ के संघ में आर्यिकाएँ ३८००० थीं, जिनमें प्रमुख आर्यिका
सुलोका (सुलोचना) थीं। श्रावकों की संख्या एक लाख एवं श्राविकाओं
की संख्या तीन लाख कही गयी है (गा. ११९३-११९४) । १९. पार्श्व जिनेन्द्र श्रावण मास में शुक्ल पक्ष की सप्तमी के प्रदोष काल में
अपने जन्म नक्षत्र (विशाखा) के रहते ३६ मुनियों के साथ सम्मेद शिखर से मोक्ष (निर्वाण) को प्राप्त हुएसिद-सत्तमीपदोसे, सावणमासम्मि जम्म-णक्खत्ते। . सम्मेदे पासजिणो, छत्तीसजुदो गदो मोक्खं ।।१२१८ ।।