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तीर्थंकर पार्श्वनाथ
पासअज्झयण नामक अध्याय में पार्श्वनाथ के उपदेशों का विवेचन हुआ है। इस उपलब्ध सामग्री पर भी प्रस्तुत आलेख में प्रकाश डाला गया है। दिगम्बर परम्परा के शौरसेनी प्राकृत के प्रमुख प्राचीन ग्रन्थ तिलोयपण्णत्ति में आचार्य यतिवृषभ ने भगवान् पार्श्वनाथ के सम्बन्ध में जो जानकारी/तथ्य अंकित किये हैं वे इस प्रकार हैं : १. २४ तीर्थंकरों के साथ २३वें क्रमांक पर पार्श्व नाम अंकित है। २. भ. पार्श्वनाथ प्राणत कल्प से अवतीर्थ हुए। ३. पार्श्व जिनेन्द्र वाराणसी नगरी में पिता अश्वसेन और माता वर्मिला
(वामा) से पौष-कृष्णा एकादशी को विशाखा नक्षत्र में उत्पन्न हुए हयसेण वम्मिलाहिं, जादो वाणारसीए पासजिणो।
पुस्सस्स बहुल-एक्कारसिए • रिक्खे विसाहाए।। गा. ५५५ ४. भगवान् महावीर नाथ वंश में एवं भ. पार्श्व उग्रवंश में उत्पन्न हुए। ५. भ. पार्श्वनाथ की उत्पत्ति (जन्म) नेमिनाथ तीर्थंकर की उत्पत्ति के
पश्चात् ८४ हजार ६ सौ ५० वर्षों के व्यतीत हो जाने पर हुई। तथा भ. पार्श्व जिनेन्द्र की उत्पत्ति (जन्म) के पश्चात् २७८ वर्ष व्यतीत हो जाने पर वर्द्धमान तीर्थंकर का जन्म हुआ। भगवान् पार्श्वनाथ की आयु नियम से १०० वर्ष और भ. महावीर की आयु ७२ वर्ष प्रमाण थी - वाससदमेक्कमाऊ, पास-जिणेदंस्स होइ णियमेण। सिरि-वड्ढमाण-आऊ बाहत्तरि वस्स-परिमाणो।। ५८९ ।। भ. पार्श्वनाथ और भ. महावीर का कुमार काल (दीक्षा के पूर्व की आयु) ३०-३० वर्ष था। भ. पार्श्वनाथ के शरीर की ऊँचाई (उत्सेध) ९ हाथ और महावीर की ऊँचाई ७ हाथ थी। पार्श्वनाथ के शरीर का रंग नीलवर्ण का था। भ० नेमीनाथ, पार्श्वनाथ एवं महावीर ने राज्य नहीं किया। इसके पूर्व वासुपूज्य और मल्लिनाथ ने भी राज्य नहीं किया था।