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तीर्थंकर पार्श्वनाथ : समग्र सामाजिक क्रान्ति के प्रणेता
२. भगवान् पार्श्वनाथ (१००) का आविर्भाव-काल ईसा-पूर्व छठी-सातवीं शताब्दी माना जाता है। वे भगवान् महावीर (७२) के पूर्ववर्ती हैं तथा माना जाता है कि उनसे २५० वर्ष पूर्व भगवान् पार्श्वनाथ हुए। भगवान् पार्श्वनाथ के १० पूर्वभवों के वर्णन मिलते हैं। उपलब्ध श्रृंखला में प्रथम भव में मरुभूति और कमठ तथा दसवें में पार्श्वनाथ और शम्बर देव के रूप में इनका उल्लेख हुआ है। पारम्परिक उल्लेख के अनुसार उनके माता-पिता के नाम क्रमश: वामा (ब्राह्मी) तथा विश्वसेन (अश्व/हयसेन) थे। उनका जन्म वाराणसी और निर्वाण श्री सम्मेद शिखर में हआ। दिगम्बर तथ्यों के अनुसार वे अविवाहित और श्वेताम्बर उल्लेखों के अनुसार विवाहित थे। ३. उपलब्ध तथ्यों के अनुसार भगवान् पार्श्वनाथ का समकालीन भारतीय समाज अत्यन्त व्यवस्थित था। “अपराविद्या" (कर्मकाण्ड) से ऊब कर उसने “पराविद्या" (अध्यात्म) को अंगीकार करना आरम्भ कर दिया था। भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा इतनी प्रशस्त और प्रभावशालिनी थी कि उनका प्रभाव उपनिषदों की विषय-वस्तु पर भी पड़ा। चातुर्याम संवरवाद के कारण भगवान् पार्श्वनाथ.द्वारा प्रतिपादित चिन्तन एक अत्यन्त व्यवस्थित सामाजिक संरचना का कारण बना। उनसे पूर्व सत्य, अस्तेय और अपरिग्रह सिर्फ सांधुई जीवन से संबद्ध थे; किन्तु उन्होंने इनमें अहिंसा को सघन प्रवेश दे कर एक नूतन, समन्वित, और सामाजिक क्रान्ति का सूत्रपात किया। ४. पार्श्वयुग में अब तक जो जीवन-मूल्य व्यक्ति-जीवन से संबद्ध थे, उनका समाजीकरण हुआ और एक नूतन आध्यात्मिक समाजवाद का सूत्रपात हुआ। जो काम महात्मा गाँधी ने उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध और बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में अहिंसा को लोकजीवन से जोड़ कर किया, वही . काम हजारों वर्ष पूर्व भगवान् पार्श्वनाथ ने अहिंसा की व्याप्ति को व्यक्ति तक विस्तृत कर सामाजिक जीवन में प्रवेश दे कर किया। यह एक अभूतपूर्व क्रान्ति थी जिसने उस युग की काया ही पलट दी। ५. माना सर्वथा प्राणातिपात विरमण (विरति); सर्वथा मृषावाद विरमण; सर्वथा बहिदादान (बहिरादान) विरमण, सर्वथा अदत्ता-दान विरमण की