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तीर्थंकर पार्श्वनाथ - कुछ विचारणीय बिन्दु
में उपस्थित किया जा सकता है। परन्तु इस विषय में यह अन्वेषणीय है कि सम्मेद शिखर का नाम पारसनाथ हिल कब से हुआ। पार्श्वनाथ के निर्वाण काल से ही या कालान्तर में उक्त नाम प्रचलित हुआ।
यहाँ यह उल्लेखनीय है कि तीर्थंकर पार्श्वनाथ की ऐतिहासिकता सिद्ध करने के लिए न तो कोई अभिलेख या शिलालेख है और न कोई स्मारक आदि अन्य कोई पुरातत्व सामग्री है। केवल जैन और बौद्ध साहित्य में पार्श्वनाथ के विषय में जो कुछ थोड़ा बहुत लिखा गया है उसी के आधार पर कुछ विद्वानों ने उनको ऐतिहासिक पुरुष सिद्ध किया है, जो उपादेय और प्रशंसनीय है।
अन्त में आचार्य समन्तभद्र द्वारा लिखित - स सत्यविद्यातपसां प्रणायक: समग्रधीरुग्रकुलाम्बरांशुभान्। मया सदा पार्श्वजिनः प्रणम्यते विलीनमिथ्यापथदृष्टिविभ्रमः ।।
इस श्लोक का स्मरण करता हुआ मैं भगवान् पार्श्वनाथ के चरणों में . सादर प्रणाम करता हूँ। मेरी भावना है -
। जैनेन्द्रं धर्मचक्र प्रसरतु सततं सर्वसौख्यप्रदायि।