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तीर्थंकर पार्श्वनाथ कुछ अतिशय क्षेत्र होते हैं और उनमें विराजमान कुछ मूर्तियाँ सातिशय होती हैं। जैसे श्री महावीर जी अतिशय क्षेत्र है और वहाँ भगवान् महावीर की एक सातिशय प्राचीन मूर्ति विराजमान है। इस मूर्ति को लगभग ४०० वर्ष पहले एक ग्वाले ने भूगर्भ से निकाला था। इस मूर्ति का अतिशय सम्पूर्ण भारत में दूर-दूर तक प्रसिद्ध है। मूर्तिकला विशेषज्ञों ने इस मूर्ति का निर्माण काल ११वी शताब्दी निश्चित किया है। संभवत: इसी प्रकार भगवान् पार्श्वनाथ की भी कुछ मूर्तियाँ सातिशय होंगी। महाराष्ट्र में जिला अकोला में अन्तरिक्ष पार्श्वनाथ नामक एक अतिशय क्षेत्र है। यहाँ के भव्य मन्दिर में भगवान् पार्श्वनाथ की ढाई फुट ऊँची एक प्राचीन प्रतिमा है जो वेदी के ऊपर अधर में विराजमान है, ऐसा कई पुस्तकों में लिखा है। कोई व्यक्ति इसे उस प्रतिमा का अतिशय समझ सकता है। इसमें उस प्रतिमा का कोई अतिशय है या नहीं, यह तो नहीं कहा जा सकता है, परन्तु वास्तव में. उस मूर्ति के निर्माता कलाकार की कला का अतिशय उस मूर्ति में अवश्य दृष्टिगोचर होता है। उस मूर्ति के नीचे ऐसे दो बिन्दु बनाये गये हैं जिनके आधार से वह मूर्ति वेदी पर अवस्थित है और मूर्ति के नीचे का शेष स्थान खाली है। इस कारण उस मूर्ति के नीचे से धागा या महीन कपड़ा निकाला जा सकता है। इसी लिए उस क्षेत्र का नाम अन्तरिक्ष पार्श्वनाथ प्रसिद्ध हो गया। परन्तु ऐसा नहीं है कि वह मूर्ति वेदी से दो चार इंच ऊपर अधर में अवस्थित हो।
१३. पार्श्वनाथ की ऐतिहासिकता
इसमें सन्देह नहीं है कि तीर्थकर पार्श्वनाथ एक ऐतिहासिक पुरुष हैं। १०० वर्ष की आयु पूर्ण होने पर उन्होंने बिहार में स्थित सम्मेद शिखर से निर्वाण प्राप्त किया था। यद्यपि अजितनाथ आदि अन्य १९ तीर्थंकरों ने भी सम्मेद शिखर से निर्वाण प्राप्त किया है, किन्तु सम्मेद शिखर से निर्वाण प्राप्त करने वाले पार्श्वनाथ अन्तिम तीर्थंकर हैं और उनके नाम पर सम्मेद शिखर को पारसनाथ हिल (पर्वत) के नाम से भी कहा जाने लगा है। इस बात को पार्श्वनाथ की ऐतिहासिकता सिद्ध करने के लिए एक प्रमाण के रूप