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तीर्थंकर पार्श्वनाथ - कुछ विचारणीय बिन्दु कारण जो परम्परा प्रचलित हो गई सो हो गई। अब उसमें सुधार की गुंजाइश ही कहाँ है।
११. पद्मावती के सिर पर पार्श्वनाथ की मूर्ति का औचित्य ___वर्तमान में पद्मावती देवी की जितनी मूर्तियाँ पाई जाती हैं उन सब के सिरं पर भगवान् पार्श्वनाथ की मूर्ति विराजमान रहती है। यह भी एक परम्परा की बात है। यहाँ विचारणीय बात यह है कि क्या पद्मावती के सिर पर पार्श्वनाथ की मूर्ति को विराजमान करना आगम सम्मत है। ऐसा माना जाता है कि उपसर्ग के समय पद्मावती ने पार्श्वनाथ को उठाकर अपने सिर पर बैठा लिया था, ऐसी जो मान्यता है वह सर्वथा निराधार है। इसी गलत मान्यता के आधार पर अपने सिर पर भगवान् पार्श्वनाथ को बैठाये हुए पद्मावती देवी की मूर्तियों के निर्माण की परम्परा पता नहीं कब से प्रचलित हई और किसने प्रचलित की, यह सब विचारणीय है। जैनागम में स्पष्ट विधान है कि स्त्री को साधु या मुनि से सात हाथ दूर रहना चाहिए।
जैनागम के ऐसे विधान के होते हुए भी पद्मावती के सिर पर भगवान् पार्श्वनाथ को बैठाने का औचिंत्य समझ में नहीं आता है।
. यहाँ यह स्मरणीय है कि आचार्य समन्तभद्र ने स्वयम्भूस्तोत्र में . भगवान् पार्श्वनाथ के स्तवन में उपसर्ग निवारण के लिए धरणेन्द्र का नाम तो लिया है किन्तु वहाँ पद्मावती का नाम कहीं नहीं है। आचार्य गुणभद्र
और वादिराजसूरि के अनुसार पार्श्वनाथ पर हो रहे उपसर्ग निवारण के .लिए धरणेन्द्र और पद्मावती दोनों आये अवश्य थे, किन्तु वहाँ भी ऐसा कोई उल्लेख नहीं है कि पद्मावती ने पार्श्वनाथ को अपने सिर पर बैठा लिया था।
१२.अतिशय क्षेत्र और सातिशय मूर्तियाँ ___जैन क्षेत्रों में कुछ सिद्ध क्षेत्र होते हैं। जैसे चौरासी-मथुरा सिद्ध क्षेत्र - है। क्योंकि यहाँ से अन्तिम केवली जम्बू स्वामी ने निर्वाण प्राप्त किया है।